ये हैं 12 महीनों के पशुपालन संबंधी कार्य


जनवरी (पौष)
- पशुओं का शीत से बचाव करें। 
- खुरपका-मुँहपका का टीका लगवायें। 
- उत्पन्न संतति का विशेष ध्यान रखें। 
- बाह्य परजीवी से बचाव के लिए दवा स्नान करायें। 
- दुहान से पहले अयन को गुनगुने पानी से धो लें।


फरवरी (माघ)
- खुरपका-मुँहपका का टीका लगवाकर पशुओं को सुरक्षितकरें। 
- जिन पशुओं में जुलाई अगस्त में टीका लग चुका है, उन्हें पुनः टीके लगवायें। 
- बाह्य परजीवी तथा अन्तः परजीवी की दवा पिलवायें। 
- कृत्रिम गर्भाधान करायें। 
- बांझपन की चिकित्सा एवं गर्भ परीक्षण करायें। 
- बरसीम का बीज तैयार करें। 
- पशुओं को ठण्ड से बचाव का प्रबन्ध करें।


मार्च (फागुन)
- पशुशाला की सफाई व पुताई करायें। 
- बधियाकरण करायें। 
- खेत में चरी, सूडान तथा लोबिया की बुआई करें। 
- मौसम में परिवर्तन से पशु का बचाव करें


अप्रैल (चैत्र)
- खुरपका-मुँहपका रोग से बचाव का टीका लगवायें। 
- जायद के हरे चारे की बुआई करें, बरसीम चारा बीज उत्पादन हेतु कटाई कार्य करें। 
- अधिक आय के लिए स्वच्छ दुग्ध उत्पादन करें। 
- अन्तः एवं बाह्य परजीवी का बचाव दवा स्नान/दवा पान से करें।


मई (बैशाख)
- गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका सभी पशुओं में लगवायें। 
- पशुओं को हरा चारा पर्याप्त मात्रा में खिलायें। 
- पशु को स्वच्छ पानी पिलायें। 
- पशु को सुबह एवं सायं नहलायें। 
- पशु को लू एवं गर्मी से बचाने की व्यवस्था करें। 
- परजीवी से बचाव हेतु पशुओं में उपचार करायें। 
- बांझपन की चिकित्सा करवायें तथा गर्भ परीक्षण करायें।


जून (जेठ)
- गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका अवशेष पशुओं में लगवायें। 
- पशु को लू से बचायें। 
- हरा चारा पर्याप्त मात्रा में दें। 
- परजीवी निवारण हेतु दवा पशुओं को पिलवायें। 
- खरीफ के चारे मक्का, लोबिया के लिए खेत की तैयारी करें। 
- बांझ पशुओं का उपचार करायें। 
- सूखे खेत की चरी न खिलायें अन्यथा जहर वाद का डर रहेगा।


जुलाई (आषाढ़)
- गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीका शेष पशुओं में लगवायें। 
- खरीफ चारा की बुआई करें तथा जानकारी प्राप्त करें। 
- पशुओं को अन्तः कृमि की दवा पान करायें। 
- वर्षा ऋतु में पशुओं के रहने की उचित व्यवस्था करें। 
- ब्रायलर पालन करें, आर्थिक आय बढ़ायें। 
- पशु दुहान के समय खाने को चारा डाल दें। 
- पशुओं को खड़िया का सेवन करायें। 
- कृत्रिम गर्भाधान अपनायें।


अगस्त (सावन)
- नये आये पशुओं तथा अवशेष पशुओं में गलाघोंटू तथा लंगड़िया बुखार का टीकाकरण करवायें। 
- लिवर फ्लूक के लिए दवा पान करायें। 
- गर्भित पशुओं की उचित देखभाल करें। 
- ब्याये पशुओं को अजवाइन, सोंठ तथा गुड़ खिलायें। देख लें कि जेर निकल गया है। 
- जेर न निकलनें पर पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें। 
- भेड़/बकरियों को परजीवी की दवा अवश्य पिलायें।


सितम्बर (भादौ)
- उत्पन्न संतति को खीस (कोलेस्ट्रम) अवश्य पिलायें। 
- अवशेष पशुओं में एच.एस. तथा बी.क्यू. का टीका लगवायें। 
- मुँहपका तथा खुरपका का टीका लगवायें। 
- पशुओं की डिवर्मिंग करायें। 
- भैंसों के नवजात शिशुओं का विशेष ध्यान रखें।
- ब्याये पशुओं को खड़िया पिलायें। 
- गर्भ परीक्षण एवं कृत्रिम गर्भाधान करायें। 
- तालाब में पशुओं को न जाने दें। 
- दुग्ध में छिछड़े आने पर थनैला रोग की जाँच अस्पताल पर करायें। 
- खीस पिलाकर रोग निरोधी क्षमता बढ़ावें।


अक्टूबर (क्वार/आश्‍विन)
- खुरपका-मुँहपका का टीका अवश्य लगवायें। 
- बरसीम एवं रिजका के खेत की तैयारी एवं बुआई करें। 
- निम्न गुणवत्ता के पशुओं का बधियाकरण करवायें। 
- उत्पन्न संततियों की उचित देखभाल करें 
- स्वच्छ जल पशुओं को पिलायें। 
- दुहान से पूर्व अयन को धोयें।


नवम्बर (कार्तिक)
- खुरपका-मुँहपका का टीका अवश्य लगवायें। 
- कृमिनाषक दवा का सेवन करायें। 
- पशुओं को संतुलित आहार दें। 
- बरसीम तथा जई अवश्य बोयें। 
- लवण मिश्रण खिलायें। 
- थनैला रोग होने पर उपचार करायें।


दिसम्बर (अगहन/मार्गशीर्ष)
- पशुओं का ठंड से बचाव करें, परन्तु झूल डालने के बाद आग से दूर रखें। 
- बरसीम की कटाई करें। 
- वयस्क तथा बच्चों को पेट के कीड़ों की दवा पिलायें।
- खुरपका-मुँहपका रोग का टीका लगवायें। 
- सूकर में स्वाईन फीवर का टीका अवश्य लगायें।