कैसे करें प्राकृतिक खेती की शुरुआत

खेती की बढ़ती लागत ने जहां किसानों की आर्थिक हालत खराब की हैं, वहीं तमाम तरह की बीमारियों ने भी पांव पसारे हैं। इसके पीछे बहुत से कारणों के साथ एक कारण यह भी है कि खेतों में अंधाधुंध पेस्टीसाईट और जहरीली दवाएं भी हैं। यदि इन सबसे से बचना है तो प्राकृति खेती एक बेहतर और सरल तरीका हो सकती है। वैसे जैविक, प्राकृतिक, जीरो-बजट, सजीव, वैकल्पिक खेती इत्यादि। इन सब में कुछ फर्क तो है परन्तु इन सब में कुछ महत्वपूर्ण तत्त्व एक जैसे हैं। इसलिये इसे कुदरती या वैकल्पिक खेती कह सकते हैं। कुदरती खेती में रासायनिक खादों, कीटनाशकों और बाहर से खरीदे हुए पदार्थों का प्रयोग या तो बिल्कुल ही नहीं किया जाता या बहुत ही कम किया जाता है। परन्तु कुदरती खेती का अर्थ केवल इतना ही नहीं है कि यूरिया की जगह गोबर की खाद का प्रयोग हो एक बात शुरू में ही स्पष्ट करना आवश्यक है कि कुदरती खेती अपनाने का अर्थ केवल हरित क्रांति से पहले के तरीकों, अपने बाप दादा के तरीकों पर वापिस जाना नहीं है। इन पारम्परिक तरीकों को अपनाने के साथ-साथ पिछले 40-50 वर्षों में हासिल किए गए ज्ञान और अनुभव का भी प्रयोग किया गया है। कुदरती खेती अपनाने का उद्देश्य यह है कि किसान को सम्मानजनक और सुनिश्‍चित आमदनी मिले, छोटी जोत की खेती भी सम्मानजनक रोजगार और जीवन दे, हर इंसान को स्वास्थ्यवर्द्धक और पर्याप्त भोजन मिले। इसके अलावा पर्यावरण संतुलन में भी कुदरती खेती का महत्वपूर्ण योगदान है।



क्यों अपनाएं इस तरह की खेती 
रसायन एवं कीटनाशक आधारित खेती टिकाऊ नहीं है। पहले जितनी ही पैदावार लेने के लिए इस खेती में लगातार पहले से ज्यादा रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ रहा है। इस से किसान का खर्चा और कर्ज बढ़ रहा है और बावजूद इसके आमदनी का कोई भरोसा नहीं है। रासायनिक खाद और कीट-नाशकों के बढ़ते प्रयोग से मिट्टी और पानी खराब हो रहे हैं। यहाँ तक कि माँ के दूध में भी कीटनाशक पाये गये हैं। इसके कारण हमारा स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। इंसान और पशुओं में बांझपन बढ़ा है। बढ़ती बीमारियों, खास तौर पर कैंसर इत्यादि में, हमारे खान-पान की महत्वपूर्ण भूमिका को वैज्ञानिक और आमजन सब मानते हैं। (हालाँकि इन बीमारियों के होने में अकेले खान-पान की ही भूमिका नहीं है, खराब होते हमारे स्वास्थ्य में हमारी जीवनशैली का भी बहुत बड़ा हाथ है)। कई पक्षी और जीव-जन्तु खत्म हो रहे हैं, यानी जीवन नष्ट हो रहा है। यह भी याद रखना चाहिये कि भोपाल गैस कांड जिस फैक्ट्री में हुआ था, उस में कीटनाशक ही बनते थे। रासायनिक खादों का निर्माण पेट्रोलियम-पदार्थों पर आधारित है और वे देर-सवेर खत्म होने वाले हैं। इस लिए, आज नहीं तो कल, हमें रासायनिक खादों, यूरिया इत्यादि के बिना खेती करनी ही पड़ेगी।


अंतत: अपनाना पड़ी प्राकृति खेती
एक और बात पाई गई है। कुदरती खेती अपनाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले बहुत से किसान ऐसे हैं जिन्होंने पहले रासायनिक खेती भी जोर-शोर से अपनाई थी, अनेक पुरस्कार प्राप्त किये परन्तु जब कुछ समय बाद उस में बहुत नुकसान होने लगा तब उन्होंने नये रास्ते तलाशने शुरू किये और अंततः कुदरती खेती पर पहुँचे। इससे रासायनिक खेती की सीमाएँ स्पष्ट होती हैं। इस समस्या के हल की तलाश का एक रास्ता आनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों (जीएम फसलों), जैसे बी.टी. कपास या बी.टी. बैंगन इत्यादि का भी है। जीएम फसलों का रास्ता ऐसी तकनीकों पर आधारित है जो न केवल किसानों की बड़ी और विदेशी कम्पनियों पर निर्भरता को और भी बढ़ा देगा, अपितु प्रकृति के साथ पहले से भी बड़ा खिलवाड़ है, ऐसा खिलवाड़ जो कई बार घातक सिद्ध भी हो चुका है। टमाटर में मछली के अंश मिलाने से पहले बहुत सोच-विचार और लम्बी अवधि के अध्ययनों की जरूरत है। ये अध्ययन उन कम्पनियों से स्वतंत्र होने चाहिये जो ये तकनीक ला रही हैं। दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं रहा। इसलिये ऐसी तकनीकों पर आधारित खेती को हम कुदरती या वैकल्पिक खेती में नहीं गिन रहे। वैसे भी देश में जीएम फसलों को और बढ़ावा देने से पहले बी.टी. कपास के अनुभव की पूरी समीक्षा होनी चाहिये। कई जगह इस के दुष्परिणाम भी सामने आये हैं।


छोटे किसानों के लिए बेहद जरूरी
जाहिर है छोटा किसान, जो खेती पर ही पूरी तरह से निर्भर है, एकदम से पूरी तरह कुदरती खेती नहीं अपना सकता। वह रोजी-रोटी का खतरा मोल नहीं ले सकता परन्तु यदि हमें यह विश्‍वास है कि अगर पैदावार घटी भी तो 2-3 साल में वापिस बढ़ेगी और मौजूदा रास्ते पर चलना खतरनाक है, तो इस शुरुआती जोखिम को हम आगे के लिये निवेश समझ सकते हैं। इसलिए हम अपनी जमीन के उतने हिस्से- आधा एकड़ या एक-दो एकड़-से शुरू कर सकते हैं जितने की, थोड़े समय के लिये, आमदनी घटने का खतरा हम उठा सकते हैं। अपने खेत के इतने हिस्से में तो पूरी तरह से रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर दें। परन्तु यह ध्यान रहे कि केवल यूरिया इत्यादि का प्रयोग बन्द करने से काम नहीं चलेगा। उस से तो उपज घटेगी ही। हमें इसके साथ-साथ कुदरती खेती के दूसरे सारे उपाय भी इस टुकड़े में करने होंगे। इस के साथ-साथ बाकी खेत में भी इन सारे उपायों में से जितने अपनाये जा सकें, वे हमें अपनाने चाहियें।


भ्रम से बचें किसान किसान भाई
कई लोग यह सोच कर शुरुआत नहीं कर पाते कि अगर हम कीटनाशकों का प्रयोग बंद कर देंगे परन्तु पड़ौसी कीटनाशकों का प्रयोग करते रहेंगे, तो हमारे खेत में कीटों का प्रकोप बढ़ जायेगा। यह डर गलत है। पड़ौसियों की बात छोड़िये, अगर कोई किसान अपने खेत के एक हिस्से में कीटनाशकों का प्रयोग बंद करता है और बाकी हिस्से में वह रसायनों का प्रयोग करता रहे, तो भी उसे नुकसान नहीं होगा। खेत के जिस हिस्से में कुदरती खेती अपनाई है, एक ओर उस हिस्से में मित्र कीट बढ़ जायेंगे और दूसरी ओर मिट्टी और पौधे की बढ़ी हुई ताकत के कारण कुदरती तरीके से उगाई उस की फसल पर कीटों का हमला कम होगा। इस लिए इस डर से कि पड़ौसी के खेत से कीटों का हमला होगा, शुरुआत करने से न डरें।