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गेहूं की पैरा विधि से खेती, गेहूं ऐसी फसल है, जो सभी प्रकार के जलवायु में अच्छी पैदावार देती है। वैसे तो यह प्रमुख रूप से ठण्डे प्रदेशों में पैदा की जाती थी, परन्तु कृषि वैज्ञानिकों के प्रयासों से यह अब पूरे विश्व में पैदा की जाने लगी है। वर्तमान युग में इसे खाद्यान्नों के राजा की उपाधि से नवाजा गया है। जलवायु के साथ सामांजस्य बैठाने की अद्भुत क्षमता के कारण ही आज विश्व भर से सबसे ज्यादा क्षेत्रफल में गेहूं की खेती ही की जाती है।उत्पादन में भी इसी का प्रथम स्थान है। गेहूं की खेती की विविधता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि पूरे विश्व का कुल 12 गेहूं उत्पादक मेगा क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। भारतवर्ष भी एक मेगा क्षेत्र का प्रतिनिधत्व करता है। गेहूं उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान (28 मिलियन हेक्टयर) है। भारत देश की सस्य भौगोलिक परिस्थतियाँ ऐसी है, कि धान, गेहूं फसल प्रणाली में गेहूं की बुआई में अत्यन्त विलम्ब होता है। क्योंकि उत्तर की अधिकांश भूमियाँ प्रायः बाढ़ और जल जमाव से त्रस्त है ऐसी परिस्थतियों में गेहूं की खेती का शुभारम्भ विशेषकर निचली धनहर जमीन पर पानी निकास के उपरान्त या धान की कटाई के बाद ही होता है। वही दूसरी और की भूमि उच्च जल धारण क्षमता, निम्न निश्चालनदर, धीमी जल निकास जैसे गुणों से युक्त है, जिसके फलस्वरूप की मृदायें नमी को काफी देर तक संजोये रखने में सक्षम है। परिणामस्वरूप गेहूँ की बुआई में स्वाभाविक विलम्ब होता है। चिकनी भूमि की एक विशेषता यह भी है, कि जुताई सही समय पर नहीं करने पर या तो भुरभुरापन (ओट) नहीं आता या फिर बड़े-बड़े ढेले बन जाते हैं। आमतौर पर यह देखा गया है, कि भारत में गेहूं की बुआई दिसम्बर में शुरू होकर कभी-कभी तो जनवरी में प्रथम पखवाड़े तक चलती रहती है। जबकि सामान्य दशा में गेहूं की बुआई का उपयुक्त समय 15 नवम्बर से नवम्बर अन्त तक होता है।अनुसंधान से यह बात सिद्ध हो गयी है कि विलम्ब से बुआई की अवस्था में प्रति दिन 35 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टयर की दर से उत्पादन में कमी होती जाती है। इससे छुटकारा पाने के लिए किसान बन्धु गेहूं की पैरा विधि से खेती कर के इस समस्या से निदान पा सकते है।
पैरा विधि क्या है?
पैरा खेती, खेती की ऐसी विधा है, जिसमें खड़ी फसल में दूसरी फसल की बुआई कर देते हैं। पैरा खेती, प्रायः वर्षा आधारित क्षेत्रों में की जाती है, क्योंकि ऐसा करने से दो उद्देश्यों की पूर्ति होती है। पैरा खेती में खड़ी फसल में दूसरी फसल की बुआई बिना किसी खेती की तैयारी (जुताई इत्यादि) के ही हो जाती है, जैसे कि उर्द की खेती गरमा धान के खेत में, आलू की खड़ी फसल में कवर्गीय फसल की बुआई करना आदि। पैरा खेती में दोनों ही फसलें अपनी औसत सघनता बनाये रखते हुये भी कुछ समय तक साथ-साथ खेत में खड़ी रहती है। एक फसल कटाई की तरफ अग्रसर होती है, तो दूसरी फसल जिसे पैरा फसल कहते हैं वो अपनी शुरूआती अवस्था में रहती है। भारत में गेहूं की पैरा खेती विशेष रूप से दियारा क्षेत्रों में की जाती है।
धान की खड़ी फसल में गेहूं
यहाँ पर प्रायः धान की खड़ी फसल में दलहनी फसल जैसे- चना, मसूर या खेसारी की खेती की जाती है। यदि धान-गेहूं फसल प्रणाली में नमी संरक्षण एवं उचित समय पर गेहूं की बुआई हेतु धान की खड़ी फसल में गेहूं फसल की बुआई करें, तो उत्पादन लागत में कमी आने के साथ-साथ उत्पादकता में आशातीत वृद्धि दर्ज की जा सकती है। धान की खड़ी फसल में बिना खेत तैयार किये गेहू की सीधी बुआई करने को ही गेहूं की पैरा खेती करना कहते हैं।
धान-गेहूं फसल चक्र पैरा खेती
गेहूं की पैरा खेती प्रायः धान-गेहूं फसल चक्र में ही अपनायी जाती है। अतः सफलता की कहानी धान से ही शुरू होती है। इसलिए धान की उचित किस्मों का चुनाव करें, जो कि अधिक जल जमाव को सहने की क्षमता से युक्त हो, तथा नवम्बर के दूसरे या तीसरे सप्ताह तक फसलावधि पूरी करने वाली हो। सफलतापूर्वक गेहूं की पैरा खेती करने के लिए किसान भाइयों को सलाह दी जाती है, कि निम्नलिखित बातों को ध्यान रखते हुए गेहूं की उत्तम पैदावार प्राप्त करें।
प्रजाति का चयन
गेहूं की पैरा खेती में एक साथ दो फसलें कुछ समय तक खेत में साथ-साथ रहती है। जिसमें कुछ समय बाद एक फसल (धान) की कटाई कर ली जाती है। कटाई के दौरान दूसरी फसल को काफी अनुकूल हो सकता है, साथ ही साथ यह फसल (गेहूं) विपरीत परिस्थतियों में उग रही होती है। वैसे गेहूं की पैरा खेती हेतु जिस गेहूं किस्म कीया जाय वो वारानी खेती हेतु उपयुक्त हो और परिस्थतियों के अनुसार सामांजस्य बिठाने और कल्ले पैदा करने में भी सक्षम हो। नवीनतम और रोगरोधी प्रजातियों का समयानुसार चयन करें।यदि गेहूं की पैरा बुआई 15 नवम्बर से लेकर दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक करनी हो तो एच डी 2843 (पूर्वा), एच डी 2733, एच पी 1761 (जगदीश), एच डी 2643 (गंगा), एच पी 1633 (सोनाली) इत्यादि किस्मों का उपयोग किया जा सकता है। यदि धान की परिपक्वता में विलम्ब की संभावना हो तो एच डी आर 77, एच पी 1493, डब्लू आर 544 और के 8027 आदि किस्मों को प्रयोग में लायें। गेहूं की पैरा खेती हेतु किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए बुआई का समय, पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण
बीज और बुआई
अनुसंधान के परिणाम बताते हैं कि गेहूं की बीज दर 20 किलोग्राम प्रति हेक्टयर (डिवलिंग विधि) से लेकर 150 किलोग्राम प्रति हेक्टयर (छिड़काव विधि) तक हो सकती है। पैरा खेती में बुआई सिर्फ छिटकाव विधि से ही की जा सकती है। इसलिए बीज दर 150 से 160 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ही रखें। बुआई खड़ी फसल में बिना जुताई के करने से समुचित सम्पर्क जमीन से न होने से उचित अंकुरण नहीं हो पाता है।
जरूरी सावधानियां
इसलिए बीज का चुनाव करते समय यह ध्यान जरूर रहे कि उसी बीज का चुनाव करें, जो की स्वस्थ हो और अंकुरण क्षमता किसी भी दशा में 80 से 85 प्रतिशत से कम न हो। बीजों को सर्वप्रथम 0.5 प्रतिशत नमक के घोल में डाल कर छान लें। घोल में ऊपर तैरने वाले बीज सूत्र कृमि से प्रभावित होते हैं। तदोपरान्त बीज को बीटावैक्स जी 696 या बेनलेट नामक रसायन से 2.5 ग्राम रसायन प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके छाया में सुखा लें।
बीज को छिटकवाँ विधि से शाम या सुबह के समय ही बुआई करना उचित रहता है, ताकि धान की खड़ी फसल को कम से कम नुकसान हो। गेहूं की पैरा विधि से बुआई 15 नवम्बर से लेकर दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक कभी भी कर सकते हैं। इसमें एक बात का विशेष ध्यान रखते हैं, कि गेहूं की बुआई तभी करें जब कि धान अपने कार्यिक परिपक्वता पर हो क्योंकि इस अवस्था में सिर्फ दानों में से नमी की ही मात्रा कम हो रही होती है।यह अवस्था धान की फसलावधि पर निर्भर करती है, मध्यम फसलावधि की किस्मों में मोटे तौर पर यह अवस्था सामान्य परिपक्वता (कटाई से) 10 से 15 दिनों पहले ही आ जाती है, और गेहूं की पैरा बुआई हेतु यही सर्वश्रेष्ट समय होता है। क्योंकि हर लिहाज से यह समय नवम्बर माह में या दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में धान की अमूमन सभी (मध्यावधि और लम्बी अवधि) दोनों ही प्रकार की प्रजातियों में पायी गयी है।
खाद और उर्वरक
धान-गेहूं फसल चक्र में गेहूं की पैरा खेती करने पर खाद और उर्वरक के विशेष प्रबंधन की जरूरत पड़ती है। दोनों ही फसलें गैर दलहनी वर्ग की है और अच्छी उत्पादन देने के लिए ही जानी जाती है। दोनों ही फसलों का खाद और उर्वरक की जरूरत स्वाभाविक रूप से ज्यादा है। इसलिए गेहूं की पैरा विधि से खेती में पोषण प्रबंधन पर ध्यान रखना पड़ता है।ध्यान देने योग्य बात ये है, कि धान अपने अन्तिम अवस्था में होती है और गेहूं का जीवन चक्र शुरू हो रहा होता है। धान को पोषण की जरूरत नहीं होती है, गेहूं की पैरा बुआई से एक दिन पूर्व डी ए पी 90 किलोग्राम, 67 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का प्रयोग करें, यदि पिछले तीन वर्षों में जिंक का प्रयोग धान या फसल चक्र के किसी भी फसल में न किया गया हो तो जिंक सल्फेट 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टयर की दर से प्रयोग करें।यदि सिंचाई की सुविधा मिल जाये तो 40 किलोग्राम यूरिया का प्रयोग अवश्य करें। यदि सिंचाई की सुविधा नहीं है, तो जब कभी शीतकालीन बरसात हो जाय 30 किलोग्राम यूरिया प्रति बरसात की दर से प्रयोग करें। दूसरी बार यूरिया का प्रयोग तभी करें, जब बरसात का अन्तराल कम से कम 20 से 25 दिनों का हो। अगर दूसरी सिंचाई की भी अवस्था बन जाय तो 20 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टयर की दर से उपरिवेशन करें।
सिंचाई एवं जल प्रबंधन
धान के साथ गेहूं की पैरा खेती मुख्य रूप से नमी संरक्षण और समय बचाने के लिए ही की जाती है। पैरा के रूप में फसले चाहे दलहनी हो या खाद्यान्न वर्ग की, प्रायः पैरा खेती संरक्षित नमी और वर्षा आधारित (वारानी) ही होती है। परन्तु कुछ विशेष भौगोलिक परिस्थतियों के कारण सिंचाई की समुचित व्यवस्था होने पर भी जल जमाव के कारण विलम्ब से बचने हेतु गेहूं की पैरा का प्रचलन है।यदि सिंचाई की व्यवस्था हो जाय तो कम से कम प्रथम सिंचाई 20 से 25 दिनों के अन्तराल पर शीर्ष जड बनते समय अवश्य करें। यदि दूसरी सिंचाई की व्यवस्था हो जाय तो 60 से 65 दिनों की अवस्था में सिंचाई करें। प्रत्येक सिंचाई के उपरान्त 30 किलोग्राम यूरिया से उपरिवेशन अवश्य करें। अगर किसी कारणवश सिंचाई की व्यवस्था ना हो पाये और शीतकालीन वर्षा पर्याप्त मात्रा में न हो तो 60 से 75 दिनों की अवस्था में साइकोसेल नामक रसायन 20 पी पी एम की दर से छिड़काव कर दें। अच्छी जल प्रबंध की अवस्था में प्लोनोफिक्स 40 पी पी एम की दर से छिड़काव कर दें। अगर जिंक की कमी का लक्षण नजर आये तो जिंक सल्फेट का 2 प्रतिशत का घोल बनाकर खड़ी फसल में छिड़काव अवश्य करें।
खरपतवार रोकथाम
गेहूं की पैरा खेती में खरपतवार की संभावना थोड़ा ज्यादा होती है। क्योंकि खेत की बिना जुताई के सीधे ही धान की खड़ी फसल में बुआई करने से जो खरपतवार धान की फसल में पहले से मौजूद होते हैं, वो साथ ही साथ बने रहते हैं। विशेषकर बहुवर्षीय खरपतवार जैसे कि दूब और मौथा। गेहूं की पैरा खेती को शुरूआती अवस्था में खरपतवार से बचाकर उसकी उचित पौध संख्या बनाये रखने से ही उचित पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
चौड़ी पत्ती के खरपतवार जैसे- बथुआ, खेसारी, सैपी आदि के नियंत्रण हेतु 2, 4-डी नामक रसायन का 700 से 800 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के 30 से 35 दिनों के बाद 4 से 5 पत्तियों की अवस्था में छिड़काव करें। पतली पत्ती के खरपतवार जैसे की गेहू का मामा के नियंत्रण हेतु आइसोप्रोटरान 1.0 किलोग्राम सक्रिय तत्व 700 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के 20 से 25 दिनों बाद प्रयोग करें।
रोग और व्याधि रोकथाम
स्मट नामक रोग से बचाव हेतु बीजोपचार वीटावैक्स या बेनलेट से करके ही बुआई करें। मौल्या नामक रोग से बचाव हेतु डी ई सी पी (60 ई सी) नामक दवा का प्रयोग प्रथम सिंचाई के समय 30 मिलीलीटर प्रति हेक्टयर की दर से करें। यदि सिंचाई की व्यवस्था न हो तो उपयुक्त दवा का 700 से 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। बाकी सभी कवक जनित बीमारियों (गरूई करनाल बन्ट, चूर्णीय आसिता) से बचाव हेतु डाईथेन एम 45 या डाइथेन- 78 नामक रसायन का उपयोग 0.2 प्रतिशत की दर से अर्थात दो किलोग्राम रसायन 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
कीट और पतंग रोकथाम
गेहूं की पैरा फसल में कीट पतंगों का प्रकोप बहुत ही कम होता है। शुरूआती अवस्था में कदुआ कीट बहुत ही ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं। इसके बचाव हेतु एल्ड्रीन या क्लोरोडान नामक दवा 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टयर की दर से प्रयोग करें। मौसम अनुकूल न रहने पर माहूँ का प्रकोप किसी भी अवस्था में हो सकता है। यह एक रस चूसक कीट है जिसके बच्चे और वयस्क दोनों ही नुकसान पहुँचाते हैं। बचाव हेतु डाइमेक्रान 100 ई सी 300 मिलीलीटर की दवा 600 से 800 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करें। चूहों के प्रबंधन हेतु जिंक या एल्यूमिनियम फास्फाइट की गोली को चूहा के बिलों में डालकर अच्छी तरह से बंद कर दें। गेहूं की खेती में कीट और रोग रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें, जानिए उपयोगी जानकारी
फसल की कटाई
फसल जब पूर्णतया पक जाये तभी उसकी कटाई करें। कटाई हसिया या कम्बाइन हारवेस्टर से जो भी सुविधाजनक हो करें। गेहूं की कटाई मार्च के दूसरे पखवाड़े से लेकर अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक अवश्य ही कर लें।
अनुमानित उत्पादन
गेहूं की पैरा खेती यदि उपरोक्त बतायी गयी विधि से की जाय तो कोई दौराय नहीं है, कि उचित पैदावार प्राप्त की जा सकती है। सामान्य अवस्था में गेहूं की पैरा खेती की पैदावार 40 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टयर बहुत ही आसानी से प्राप्त की जा सकती है।