कृषि आधारित व्यावसाय बढ़ा सकते हैं किसानों की आमदनी

यह बात सोलह आने सच है कि भारत में एक मात्र कृषि ही है जो देश को खुशहाल बनाने की ताकत रखती है। यहां कितने ही उद्योग लगा दिए जाएं लेकिन खेती से बेहतर और आमदनी वाला कोई और उद्योग नहीं हो सकता है। जरूरत सिर्फ इतनी है कि कृषि उद्योग के प्रति जागरूक करने और उसे सही दिशा देने की जरूरत है। यदि कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए तो किसानों को आमदनी अपेक्षा से कई गुना ज्यादा बढ़ सकती है। आर्थिक विशेषज्ञों ने सिर्फ प्रति एकड़ कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर समूचा ध्यान न केन्द्रित करते हुए कृषि-सम्बद्ध व्यवसायों/गतिविधियों को भी प्रोत्साहन देने पर जोर देना शुरू किया है। कृषि-सम्बद्ध गतिविधियों से विशाल ग्रामीण आबादी को जोड़ने के काफी सकारात्मक नतीजे देखने को मिल सकते हैं और कृषक आय बढ़ाने में आशातीत सफलता हासिल हो सकती है।



दुगनी आय के लिए लग जाएंगे कई साल 
वर्तमान सरकार द्वारा वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगना करने का संकल्प किया गया है। अगर कृषि क्षेत्र की वर्तमान 3 प्रतिशत वार्षिक विकास दर के आधार पर बात करें तो यह लक्ष्य पूरा होने में 25 वर्षों का लम्बा समय लग सकता है। सम्भवतः यही कारण है कि आर्थिक विशेषज्ञों ने सिर्फ प्रति एकड़ कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर समूचा ध्यान न केन्द्रित करते हुए अन्य कृषि-सम्बद्ध व्यवसायों/गतिविधियों को भी प्रोत्साहन देने पर ज्यादा जोर देना शुरू किया है। वर्ष 2019-20 के लिए पेश किए गए केन्द्र सरकार के बजट में भी कृषि सम्बद्ध गतिविधियों को बढ़ावा देने की बात कही गई है। इनमें खासतौर पर खादी, बांस, मधुमक्खी पालन आदि का उल्लेख बजट भाषण के दौरान किया गया। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में फूड प्रोसेसिंग और अन्य उद्योगों की बड़े पैमाने पर स्थापना किए जाने की फौरी आवश्यकता का भी इस बजट में उल्लेख किया गया। इसके लिए ग्रामीण आबादी का बाजार से जुड़ा होना सबसे आवश्यक शर्त है। कमोबेश यही नीतिगत दृष्टिकोण शहरी क्षेत्रों में रहने वाले आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग के लोगों के उत्थान के लिए अपनाया गया और कहने की जरूरत नहीं कि सेवा क्षेत्र के विस्तार से उनकी आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि सम्भव हो सकी। निसंदेह इसी प्रकार उम्मीद की जा सकती है कि कृषि-सम्बद्ध गतिविधियों से विशाल ग्रामीण आबादी को जोड़ने के काफी सकारात्मक नतीजे देखने को मिल सकते हैं और कृषक आय बढ़ाने में आशातीत सफलता हासिल हो सकती है। 


भूमिहीन और सीमांत किसान ज्यादा
इस क्रम में यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में बसने वाली आबादी का बड़ा हिस्सा भूमिहीन श्रमिकों और सीमांत कृषकों का है। सिर्फ परम्परागत कृषि कार्यकलापों के बल पर इनकी आमदनी में पर्याप्त वृद्धि कर पाना सम्भव नहीं है। यही कारण है कि कृषि से इतर किन्तु कृषि सम्बद्ध अन्य कुटीर उद्योगों और मानव-श्रम आश्रित हुनर से जुड़ी गतिविधियों के विकास पर केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से ध्यान दिया जा रहा है। इसमें स्थानीय लोगों को भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करना और आय बढ़ाने में ऐसी गतिविधियों के महत्व के प्रति उन्हें जागरूक करना सबसे बड़ी चुनौती है।


लिज्जत ने बदली तस्वीर
कृषि-सम्बद्ध कार्यों की बदौलत आमदनी बढ़ने के सफल उदाहरण विश्‍व के कई विकासशील देशों में देखने को मिले हैं। इस अतिरिक्त आय से इन देशों की कृषि पर गुजर-बसर करने वाली बहुसंख्यक आबादी को न सिर्फ गरीबी-रेखा से ऊपर उठाने में मदद मिली बल्कि जीवन, स्वास्थ्य तथा शिक्षा के स्तर में भी काफी प्रगति देखने को मिली। इसमें ऐसी ही चुनिंदा कृषि-सम्बद्ध गतिविधियों को शामिल किया जा रहा है जिनमें कम-से-कम निवेश की आवश्यकता पड़े तथा बिना किसी विशेष ट्रेनिंग के किसान एवं उनके परिवार के लोग खेती के दौरान बचे खाली समय में इन्हें आसानी से कर अतिरिक्त आमदनी का स्रोत विकसित कर सकें। कच्चे माल से प्रसंस्करित उत्पाद तैयार करने का सबसे अच्छा उदाहरण लिज्जत पापड़ का है, जिसने ग्रामीण इलाकों की 43,000 से अधिक महिलाओं को जोड़कर अत्यंत कम समय में यह सफलता हासिल की।