खास तकनीक से करें गेंहू की सिंचाई, मिलेगा ज्यादा उत्पादन

एनकेएम
बुवाई के पश्‍चात फसल की क्रान्तिको अवस्थाओं पर सिंचाई करने से 6 सिंचाई पर्याप्त होती है। प्रथम सिंचाई शीर्ष जड़ जमते समय जब फसल 20 से 25 दिन की हो जाये तब करनी चाहिये। दूसरी सिंचाई जब कल्ले बनने लगे तथा फसल 45 से 50 दिन की हो जाये, तीसरी सिंचाई गाँठ बनते समय बुवाई के 65 से 70 दिन बाद, चौथी सिंचाई बालियाँ निकलते समय बुवाई के 85 से 90 दिन बाद, पाँचवी सिंचाई 100 से 110 दिन बाद जब फसल दूधिया अवस्था में हो तथा अंतिम सिंचाई दाना पकते समय करनी चाहिये, जब फसल 115 से 120 दिन की हो जाये। यदि सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम हो तथा चार सिंचाई ही दे सकते हो तो शीर्ष जड़ बनते समय, गाँठ बनते समय, बालियां निकलते समय और दाना पकते समय करनी चाहिये। सिंचाई फुव्वारा विधि से करनी चाहिये। इसमें क्यारी सिंचाई की अपेक्षा कम पानी की आवश्यकता होती है।


खरपतवार नियंत्रण
गेंहू की फसल के साथ अनेको खरपतवार जिनमें गोयला, चील, प्याजी, मोरवा, गुल्ली डन्डा व जंगली जई इत्यादि उगते है और पोषक तत्व, नमी व स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा कर फसल उत्पादन को काफी कम कर देते है। अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए उचित खरपतवार नियंत्रण उचित समय पर करना बहुत ही आवश्यक है। फसल के बुवाई के एक या दो दिन पश्‍चात तक पेन्डीमैथालीन खरपतवारनाशी की 2.50 लीटर मात्रा 500 पानी में घोल बनाकर समान रूप से छिड़काव कर देना चाहिये। यदि खेत में गुल्ली डंडा व जंगली जई का प्रकोप अधिक हो तो आइसोप्रोटूरोन या मैटाक्सिंरान खरपतवारनाशी की 1 किलोग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये। इसके उपरान्त फसल जब 30 से 35 दिन की हो जाये तो 2, 4-डी की 750 ग्राम मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिये। गेहूं की खेती में खरपतवार प्रबंधन की विस्तृत जानकारी यहाँ पढ़ें- गेहूं की खरपतवार रोकथाम कैसे करें, जानिए आधुनिक एवं उपयोगी जानकारी


पौध सरंक्षण
गेहूं की खेती में अनेकों प्रकार के कीट जिनमें दीमक, आर्मी वर्म, एफिड एवं जैसिडस तथा चूहे नुकसान पहुँचाते है। भूमि की तैयारी करते समय 20 से 25 किलोग्राम एन्डोसल्फान भुरक देना चाहिये। यदि दीमक का प्रकोप खड़ी फसल में हो तो क्लोरीपाइरीफोस की 4 लीटर प्रति हेक्टेयर मात्रा सिंचाई के साथ दे देनी चाहिए। रस चूसने वाले कीटो के नियंत्रण के लिए इकालक्स की 1 लीटर मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। गेहूं की खेती में कई तरह की बिमारियों का भी प्रकोप होता है, जैसे- झुलसा एवं पत्ती धब्बा, रोली रोग, कण्डवा, मोल्या धब्बा के लिए मेन्कोजेब 2 किलोग्राम, रोली राग के लिए गंधक का चूर्ण 25 किलोग्राम या 2 किलोग्राम मैन्कोजेब, कन्डुले के लिए बीज का फहूंदनाशक जैसे थीरम या वीटावैक्स से उपचार, मोल्या रोग के लिए कार्बोफ्यूरोन 3 प्रतिशत रसायन व ईयर कोकल एवं टुन्डू रोग के लिए बीज को नमक के 20 प्रतिशत से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिये। चूहों के नियंत्रण हेतु एल्युमिनियम फास्फाइड या राटाफीन की गोलियां प्रयोग करनी चाहिये। गेहूं की खेती में कीट और रोग रोकथाम की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- गेहूं में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें, जानिए उपयोगी जानकारी


कटाई एवं मॅडाई
जब पौधे पीले पड़ जाये तथा बालियां सूख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिये। जब दानों में 15 से 20 प्रतिशत नमी हो तो कटाई का उचित समय होता है। कटाई के पश्‍चात् फसल को 3 से 4 दिन सूखाना चाहिये तथा मंडाई करके अनाज में जब 8 से 10 प्रतिशत नमी रह जाये तो भंडारण कर देना चाहिये।


अनुमानित उत्पादन
गेहूं की फसल से उपज किस्म के चयन, खाद और उर्वरक के उचित प्रयोग और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है। लेकिन सामान्यतः उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर 40 से 70 कुन्तल प्रति हैक्टर तक अनाज की उपज प्राप्त की जा सकती है।


गेहूं की खेती से अधिक पैदावार के लिए आवश्यक जानकारी
1)  गेहूं की खेती के लिए शुद्ध एवं प्रमाणित बीज की बुआई बीज शोधन के बाद की जाए।
2)  प्रजाति का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता एवं समय विशेष के अनुसार किया जाए।
3)  गेहूं की खेती हेतु दो वर्ष के बाद बीज अवश्य बदल दीजिए।
4)  संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर सही समय पर उचित विधि से किया जाए।
5)  क्रान्तिक अवस्थाओं (ताजमूल अवस्था एवं पुष्पावस्था) पर सिंचाई समय से उचित विधि एवं मात्रा में की जानी चाहिए।
6)  गेहूं की खेती में कीड़े एवं बीमारीयों से बचाव हेतु विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
7)  गेहूं की खेती में कीट और रोगों का प्रकोप होने पर उसका नियंत्रण समय से किया जाना चाहिए।
8)  गेहूं की खेती के जीरोटिलेज एवं रेज्ड वेड विधि का प्रयोग किया जाए।
9)  गेहूं की खेती हेतु खेत की तैयारी के लिए रोटवेटर हैरो का प्रयोग किया जाना चाहिए।
10) गेहूं की खेती में अधिक से अधिक जीवांश खादों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
11) गेहूं की खेती के लिए यथा सम्भव आधी खादों की मात्रा जीवांश खादों से पूरी की जानी चाहिए।
12) किसी भी प्रकार की खाद का अंधाधुंध प्रयोग न करें उनकी संतुलित मात्रा फसल के लिए अच्छी रहती है।
13) गेहूं की खेती हेतु जिंक और गंधक की कमी वाले खेतों में बुवाई से पहले इनकी संतुलित मात्रा अवश्य डालें।