जलवायु परिवर्तन से दुनिया के महासागरों, समुद्री तटों, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। अब वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन से हमारी बहुमूल्य मिट्टी भी प्रभावित हो सकती है। एक अमेरिकी विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन से दुनिया के कई इलाकों में मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता कम हो सकती है। इसका भूजल आपूर्ति, खाद्य उत्पादन, जैव विविधता और पर्यावरण प्रणालियों पर भी गंभीर असर पड़ सकता है।
साइंस एडवांसेस पत्रिका में प्रकशित अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया में वर्षा के पैटर्न और पर्यावरणीय परिस्थितियों में बदलाव हो रहा है। इस विश्वविद्यालय के मृदा वैज्ञानिक और अध्ययन के सह-लेखक डेनियल गिमेनेज का कहना है कि दुनिया के कई हिस्सों में मिट्टी के साथ जल की क्रिया में तेजी से परिवर्तन हो सकता है। हम चाहते हैं कि इस परिवर्तन की दर और उसके परिमाण को मापा जाए और इसे जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों में शामिल किया जाए। कार्बन भंडारण के लिए मिट्टी में पानी की मौजूदगी की अहम भूमिका होती है और मिट्टी में होने वाले परिवर्तन से हवा में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर पर भारी प्रभाव पड़ सकता है।
ध्यान रहे कि कार्बन डाइऑक्साइड एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है जिसका सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है।गत वर्ष नेचर पत्रिका में प्रकशित एक अन्य अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन से दुनिया के विभिन्न हिस्सों में वर्षा की दर बढ़ेगी। इससे मिट्टी में जल की प्रविष्टि कम हो सकती है तथा भूक्षरण और आकस्मिक बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है। अमेरिका के कंसास इलाके में पिछले 25 वर्षो से किए जा रहे एक प्रयोग के दौरान संबंधित विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि बारिश में 35 प्रतिशत वृद्धि से मिट्टी में पानी की प्रविष्टि दर में यानी मिट्टी द्वारा पानी को सोखने की दर में 21 से 30 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है, जबकि मिट्टी में पानी के टिकने की दर में बहुत मामूली वृद्धि होती है। सबसे अधिक परिवर्तन मिट्टी में बड़े छिद्रों या खाली जगहों की स्थिति बदलने की वजह से होते हैं। बड़े छिद्रों द्वारा ग्रहण किया गया पानी पौधों और जीवाणुओं की जैविक गतिविधियों तथा मिट्टी में पौष्टिक तत्वों के चक्रण में काम आता है। क्षरण की वजह से होने वाला मिट्टी का नुकसान भी इन गतिविधियों से कम हो सकता है। अधिक वर्षा होने पर पौधों की जड़ें मोटी होकर मिट्टी के बड़े छिद्रों को अवरुद्ध कर देती हैं। वैज्ञानिक अब अध्ययन के अगले चरण में इन परिवर्तनों की कार्यप्रणाली की जांच करेंगे, ताकि इसके नतीजों को दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में लागू कर सकें और उन्हें पर्यावरण प्रणालियों के व्यवहार के पूर्वानुमानों में जोड़ा जा सके। दरअसल इस शोधकार्य का व्यापक मकसद यह है कि वैज्ञानिक मिट्टी की विभिन्न किस्मों का अध्ययन भी करना चाहते हैं और जलवायु परिवर्तन की वजह से मिट्टी में होने वाले दूसरे बदलावों की पहचान करना चाहते हैं। साभार- इंडिया वाटर पोर्टल हिन्दी