जैविक गेंहू लगाया तो वैज्ञानिक तरीके से रोकें खरपतवार

एनकेएम
कहा जाता है कि गेंहू की फसल लगाने के बाद जो खरपतवार उगते हैं उन पर नियंत्रण रखना बेहद जरूरी है। यदि जागरूक किसान खरपतवार पर नियंत्रण कर लेते हैं तो उत्पादन में वृध्दि भी हो जाती है। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर इस खरपतवार का नियंत्रण कैसे किया जाए। खासतौर से तब जब जैविक गेंहू का उत्पादन किया जा रहा हो। यहां नेशनल कृषि मेल इससे निजात पाने के तरीके बताने की कोशिश कर रहा है। खरपतवार नियन्त्रित करने हेतु गेहूं की फसल में दो बार निराई-गुड़ाई करना लाभप्रद होता है।


प्रथम निराई-गुड़ाई
प्रथम निराई-गुड़ाई बुवाई के 30 से 40 दिन बाद एवं दूसरी गुड़ाई फरवरी माह में आवश्यक हो जाती है, क्योंकि तापमान बढ़ने पर फसल के साथ खरपतवारों की वृद्धि भी होती है। निराई-गुड़ाई करने से (पौध संख्या इष्टतम रहती है) अवांछित खरपतवारों से छुटकारा मिलता है और मिट्टी में उपयुक्त वायु संचार बना रहता है। गेहूं की जैविक खेती के लिए फसल में खरपतवार नियन्त्रित रहे, यह मुख्यतः कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे फसल चक्र, बुवाई का समय, खेत की तैयारी इत्यादि। फसलचक्र बदलने से वार्षिक खरपतवारों का नियन्त्रण स्वतः ही हो जाता है। गुड़ाई हेतु परम्परागत यंत्रों की तुलना में उन्नत कृषि यंत्रों जैसे व्हील-हो, हैण्ड-हो इत्यादि से खरपतवारों का नियन्त्रण प्रभावी रूप से होता है और परिश्रम भी कम करना पड़ता है।


कीट एवं रोग व्याधि से सुरक्षा
गेहूं की जैविक खेती हेतु आमतौर पर मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में गेहूं में कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है। लेकिन कभी-कभी माहू का प्रकोप होता है, अगर माहू का प्रकोप बढ़ रहा हो तो एजेडायरेक्टिन 0.15 प्रतिशत का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त चूहों का प्रकोप भी देखा गया है। मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में गेहूं की जैविक फसल पर लगने वाले रोगों में पीली व भूरी गेरूई प्रमुख हैं। पीली गेरूई रोग में पत्तियों की ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे अण्डाकार हल्के पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो कतारों में होते हैं। भूरी गेरूई में पत्तियों पर नारंगी रंग और भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो कतारों में न हो कर सतह में बिखरे होते हैं। इसके अतिरिक्त अनावृत कण्ड या कंडुवा रोग गेहूँ का एक प्रमुख बीज जनित रोग है। इसमें बालियों में दानों के स्थान पर काले रंग का चूर्ण बन जाता है।


रोकथाम के उपाय
1) विभिन्न किस्में जो कि मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों हेतु अनुमोदित की गई है, रोग एवं कीटों के प्रति सहनशील और प्रतिरोधक क्षमता रखती है।
2) गेहूं की जैविक फसल लिए शुद्ध और प्रमाणित बीजों का प्रयोग करें।
3) पौधे के रोगी भाग को सावधानी पूर्वक तुरन्त नष्ट कर दें या जला दें तथा स्वस्थ फसल से बीज प्रयोग में लाएं।
4) जैविक फफूदनाशियों स्यूडोमोनास, फ्लोरोसेन्स और ट्राइकोडर्मा का छिड़काव 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में करें।
5) गेहूं की जैविक फसल हेतु एजेटोबेक्टर एवं पी.एस.बी. से बीज उपचार करें।
6) गेहूं की जैविक फसल हेतु समय से बुवाई करें।
7) गेहूं की जैविक फसल के लिए ट्राइकोडर्मा से उपचारित खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग करें।