खेत की सही तैयारी दिलाएगी गेंहू का ज्यादा उत्पादन

नेशनल कृषि मेल
गेंहू की खेती लगभग सभी किसान करते हैं। जिसमें से कई किसान ऐसे होते हैं जिन्हे उपज अपेक्षा से ज्यादा मिल जाती है। क्या आपने सोचा है कि ऐसा क्यों होता है। इसके पीछे बहुत से कारण होते हैं। सबसे पहले तो खेत की तैयारी ही है। जो किसान वैज्ञानिकों की बताई विधि से खेती करते हैं उन्हे ज्यादा उत्पादन मिलता है और नुकसान होने की संभावना बहुत कम हो जाती है। नेशनल कृषि मेल वैज्ञानिकों की विधि अनुसार यहां खेती की तैयारी और जलवायू के अलवा मिट्टी से चयन संबंधी जानकारी देने की कोशिश कर रहा है। देश का गेहूं की खेती और उत्पादन में प्रमुख स्थान है। पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं। भारत देश आज 8 करोड़ टन से अधिक गेहूं का उत्पादन कर रहा है। हालांकि, देश की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए गेहूं उत्पादन में वृद्धि की और अधिक आवश्यकता है। इसके लिए गेहूं की उन्नत उत्पादन तकनीकियों को अपनाने की आवश्यकता है। इन तकनीकियों में किस्मों का चुनाव, बोने की विधियां, बीज दर, पोषक तत्व प्रबंधन, सिंचाई प्रबन्धन, खरपतवार नियन्त्रण तथा फसल संरक्षण आदि प्रमुख है। 
उपयुक्त जलवायु
गेहूं के बीज अंकुरण के लिए 20 से 25 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उचित रहता है। गेहूं की बढवार के लिए 27 डिग्री सेन्टीग्रेड से अधिक तापमान होने पर विपरीत प्रभाव होता है और पौधो की सुचारू रूप से बढवार नहीं हो पाती है, क्योंकि तापमान अधिक होने से उत्स्वेदन प्रक्रिया द्वारा अधिक उर्जा की क्षति होती है तथा बढवार कम रह जाती है। जिसका फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। फूल आने के समय कम तथा अधिक तापमान हानिकारक होता है।
भूमि का चयन
सिंचाई के क्षेत्रों में गेहूं की खेती हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है, किन्तु अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी से चिकनी दोमट समतल एवं जल निकास वाली उपजाऊ भूमि अधिक उपयुक्त है। गेहूं के लिये अधिक लवणीय एवं क्षारीय भूमि उपयुक्त नहीं है। जहां पर एक मीटर तक कठोर पड़त हो, वहां गेहूं की खेती नहीं करनी चाहिए।
भारी मिट्टी के खेतों की तैयारी 
भारी मिट्टी के खेतों में मिट्टी पलटने वाले हल से पहली जुताई गर्मी में उत्तर से दक्षिण में कर के खेत को खाली छोड़ दें। वर्षा के दिनों में दो तीन बार आवश्यकतानुसार खेत की जुताई करते रहें, जिससे खेत में खरपतवार न जमें। वर्षा उपरान्त एक जुताई और करके सुहागा लगा कर खेत को बोनी के लिए तैयार कर दें।
हल्की मिट्टी के खेतों की तैयारी 
हल्की मिट्टी वाले खेतों में गर्मी की जुताई न करें। वर्षा के दिनों में तीन बार आवश्यकतानुसार जुताई करें व सुहागा लगाकार खेत को बोनी के लिये तैयार करें। सिंचाई और सघन खेती वाले क्षेत्रों में उपरोक्त दोनों प्रकार की भूमि की जुताइयाँ आवश्यकतानुसार करे।
पोषक तत्व प्रबंधन
गेहूं उगाने वाले ज्यादातर क्षेत्रों में नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है तथा फास्फोरस और पोटाश की कमी भी क्षेत्र विशेष में पाई जाती है। पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में गंधक की कमी भी पाई गई है। इसी प्रकार सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जस्ता, मैंगनीज तथा बोरॉन की कमी गेहूं उगाये जाने वाले क्षेत्रों में देखी गई है। इन सभी तत्वों की भूमि में मृदा परीक्षण को आधार मानकर आवश्यकतानुसार प्रयोग करना चाहिए। लेकिन ज्यादातर किसान विभिन्न कारणों से मृदा परीक्षण नहीं करवा पाते हैं। ऐसी स्थिति में गेहूं के लिए संस्तुत दर इस प्रकार है, जैसे-समय से सिंचित की स्थिति में लगभग 125 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 से 60 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। विलम्ब से बुवाई की अवस्था में तथा कम पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में समय से बुवाई की अवस्था में लगभग 20 से 40 किलोग्राम पोटाश की अधिक आवश्यकता होती है।
उर्वरकों की जरूरत
यदि बारानी क्षेत्र है तो समय से बुवाई करने पर 40 से 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 से 30 किलोग्राम फास्फोरस तथा 25 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।असिंचित दशा में उर्वरकों को कूड़ों में बीजों से 2 से 3 सेंटीमीटर गहरा डालना चाहिए तथा बालियां आने से पहले यदि पानी बरस जाए तो 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन का छिड़काव करना चाहिए। सिंचित दशाओं में फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा बुवाई से पहले भूमि में अच्छे से मिला देनी चाहिए। नाइट्रोजन की शेष दो तिहाई मात्रा का आधा प्रथम सिंचाई के बाद तथा शेष आधा द्वितीय सिंचाई के बाद छिड़क देना चाहिए। बुवाई के 3 से 4 हफ्ते पहले 25 से 30 टन अच्छी तरह से गली-सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिटटी में अवश्य मिलाएं।