खरीफ में कम तो रबी में ज्यादा होगा उत्पादन!

इस वर्ष के मॉनसून को इतिहास में कई अस्वाभाविक घटनाओं के लिए याद किया जाएगा। यद्यपि मॉनसून का चार महीने का मौसम 30 सितंबर को आधिकारिक रूप से समाप्त हो जाता है लेकिन इस वर्ष दूर-दूर तक इसका कोई निशान नजर नहीं आ रहा है। भारतीय मौसम विभाग का मानना है कि 10 अक्टूबर के पहले मॉनसून की वापसी होती नहीं दिखती। इससे पहले सन 1961 में मॉनसून ने 1 अक्टूबर को लौटना शुरू किया था। यानी, आधिकारिक तौर यह मॉनसून का सबसे लंबा ठहराव है। इसके अलावा इस वर्ष हुई कुल बारिश भी 25 वर्षों में सर्वाधिक है।
 सितंबर के अंत तक सर्वोच्च स्तर से 10 फीसदी अधिक बारिश दर्ज की जा चुकी है। इसके अलावा सन 1931 के बाद से यह पहला मौका है जब मॉनसून कमजोर शुरुआत के बाद इस कदर वापसी करने में सफल रहा कि जून में बारिश की 33 फीसदी कमी दूर हो गई और वर्षा का स्तर सामान्य से बेहतर श्रेणी में चला गया। मोटे तौर पर ऐसा अगस्त-सितंबर में अत्यधिक तेज बौछारों की वजह से हुआ। सितंबर में हुई बारिश औसत से 52 फीसदी अधिक रही। बीते 102 वर्षों में यह सितंबर सबसे अधिक बारिश वाला रहा। इसके अलावा बारिश का रुझान कुछ ऐसा रहा कि वह मॉनसून के आगमन और वापसी, शुरुआती मौसम की बारिश और अतिरंजित मौसम की घटनाओं को लेकर सोच और विश्‍लेषण में बदलाव की मांग करता है। बारिश को लेकर मौजूदा सामान्य स्तर सन 1941 में तय किए गए थे और उन्हें अब लागू नहीं माना जा सकता है। कह सकते हैं कि ऐसा जलवायु परिवर्तन की वजह से हुआ है। मॉनसून अब पहले निर्धारित तिथियों के मुकाबले देरी से आता और जाता है। अब यह शुरुआती मौसम में धीमा रहता है। बीते 11 में से सात वर्षों में जून यानी मॉनसून के पहले महीने में बारिश सामान्य से कम रही। तेज बारिश की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इतना ही नहीं पूर्वोत्तर भारत अब उच्च वर्षा वाला क्षेत्र नहीं रहा। सन 1990 और 2000 के दो दशकों की अच्छी बारिश के बाद अब इस क्षेत्र मेंं कम बारिश हो रही है। जलवायु में यह बदलाव कृषि क्षेत्र पर व्यापक असर डालेगा। ऐसे में फसल चक्र और कृषि अर्थव्यवस्था की गतिविधियों में समायोजन की आवश्यकता है। जल प्रबंधन से जुड़े व्यवहार में भी बदलाव लाना होगा। 
 मॉनसून में यह इजाफा अल नीनो (प्रशांत सागर के गर्म होने) के कमजोर होने से हुआ है। इसके साथ ही जुलाई में हिंद महासागर के तापमान में बदलाव आया है। दिलचस्प बात है कि मौसम विभाग ने अन्य वैश्‍विक व घरेलू एजेंसियों की तुलना में अल नीनो के कमजोर पडऩे का सटीक अनुमान लगाया। इन एजेंसियों को लग रहा था कि इसके चलते मॉनसून कमजोर बना रहेगा। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मौजूदा मॉनसून की विचित्रताओं के अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पडऩे की आशंका नहीं है। अनुमान लगाया जा रहा है कि मौजूदा खरीफ सत्र में फसल उत्पाद सामान्य रहेगा। इसके रबी सत्र से बेहतर रहने की आशा है क्योंकि देर से बारिश होने से मिट्टी में नमी बरकरार रही। देश के 113 बड़े जलाशयों का जल स्तर पिछले वर्ष से 15 फीसदी अधिक और बीते 10 वर्ष के औसत से 21 फीसदी अधिक है। अधिकांश बांधों के गेट खोलकर ज्यादा पानी बहाना पड़ा। यह सिंचाई, जलविद्युत उत्पादन और जल संबंधी अन्य औद्योगिक गतिविधियों के लिए फायदेमंद है। ये सारी बातें आर्थिक गतिविधियों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। साभार-बिजनेस स्टैंडर्ड हिन्दी