कम खेती और थोड़े संसाधन हैं तो श्री विधि से लगाएं गेंहू की फसल

नेशनल कृषि मेल
खेती का रकबा दिन प्रतिदिन घटना जा रहा है पारिवारिक बटवारे के कारण भी खेती की जमीन कम हो रही है। घटती खेती का मतलब है आमदनी और संसाधनों की कमी होना। ऐसे में जरूरी है कि कम लागत और सीमित संसाधनों से खेती की जाए। यदि लघु और सीमांत किसान गेंहू की खेती करने का मन बना रहे हैं तो उनके लिए श्री विधि से काफी उपयोगी और फायदेमंद साबित हो सकती है। क्योंकि वे बहुत ही कम जमीन एवं सीमित संसाधनों के साथ खेती करते हैं तथा उन्हें अधिक बीज और खाद का प्रयोग किये बिना अधिक उपज की आवश्यकता होती है। ऐसे में गेहूं की श्री विधि से खेती अपनाकर अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ आमदनी में भी बढ़ोतरी की जा सकती है।
पहले तो समझें कि क्या श्री विधि
यह गेहूं की खेती करने का एक तरीका है, जिसमें धान की श्री विधि के सिद्धांतों का पालन करके अधिक उपज प्राप्त कि जाती है। इस विधि में मात्र 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बीज की जरूरत होती है। बीज शोधन और बीज उपचार के साथ पौधों के बीच अधिक दूरी, 8 ईच कतार से कतार और 8 इंच पौधा से पौधा लगाना होती है। साथ ही 2 से 3 बार खरपतवार की निकासी और वीडर से गुड़ाई की करना होती है। फसल की देखभाल सामान्य (परम्परागत) गेहूं की फसल की ही तरह की जाती है।
बीज चुनाव और बीज का उपचार
गेहूं की श्री विधि से खेती के लिए किसी खास बीज की जरूरत नहीं है, आपके क्षेत्र के लिए जो उन्नत बीज अनुशंसित है, उसी का प्रयोग करें। अगर आपका बीज पुराना है, तो नया बीज उपयोग में लें। 10 किलो गेहूं के बीज के उपचार के लिए 20 लीटर गर्म गुनगुना पानी और केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) 5 किलोग्रामतथा गुड़ 4 किलोग्रामऔर गौ-मूत्र 4 लीटर तथा बाविस्टिन (कार्बन्डाजिम) फुफूदीनाशक 20 ग्राम की जरूरत होगी। 
श्रीविधि से खेती के लिए बीजोपाचार का तरीका
* अपने 10 किलोग्राम बीज में से मिट्टी, कंकड़ और खराब बीजों को अलग छाँट लें।
* 20 लीटर पानी एक बर्तन में गर्म करें (60 डिग्री सेल्सियस यानी गुनगुना होने तक)।
* छाँटे हुए स्वच्छ बीजों को इस गर्म पानी में डाल दें।
* पानी के ऊपर तैर रहे बीजों को निकाल दे और बीज के लिए प्रयोग में न लाएं।
* इस पानी में 5 किलोग्राम केचुआ खाद, 4 किलोग्राम गुड़ और 4 लीटर गौमूत्र मिलाकर 8 घंटे के लिए छोड़ दें।
* अब 8 घंटे के बाद इस मिश्रण को एक कपड़े से छान लें जिससे बीज और अन्य मिश्रण घोल से अलग हो जाए, घोल के पानी को फेंक दें।
* बीज और अन्य मिश्रण में बाविस्टिन (कार्बन्डाजिम) फफूदीनाशक 20 ग्राम मिलाकर 12 घंटे के लिए अंकुरित होने के लिए गीले बोरे में बांधकर छोड़ दें। इसके बाद अंकुरित बीज को बोने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।इस प्रकार का बीज उपचार बीज के बढवार की शक्ति को बढ़ाता है तथा वे तेजी से बढवार लेते हैं, इसे प्राइमिंग भी कहते है।
गेहूं की श्री विधि से खेत की तैयारी
गेहूं की श्री विधि के लिए खेत की तैयारी सामान्य गेहूं की खेती की तरह ही करते हैं। गोबर खाद 20 क्विंटल या केंचुआ खाद 4 क्विंटल प्रति एकड़ में प्रयोग करना चाहिए। कम्पोस्ट खाद की उचित मात्रा के बिना सिर्फ रासायनिक खाद का प्रयोग करते रहने से खेत की उपज क्षमता घटती जाती है। अगर खेत में पर्याप्त नमी नहीं है तो बुआई के पहले एक बार पलेवा (जुताई से पहले सिंचाई) करना चाहिए। अंतिम जुताई के पहले 27 किलोग्राम डी ए पी एवं 13.5 किलोग्राम पोटाश खाद प्रति एकड़ खेत में छींटकर अच्छी तरह हल से मिट्टी में मिला दें।
गेहूं की श्री विधि से बुआई
बुआई के समय खेत में अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी होना चाहिए, क्योंकि अंकुरित बीज लगाए जा रहे हैं, अगर पर्याप्त नमी नहीं होगी तो अंकुर सूख जायेंगे। बीजों को कतार में 8 इंच की दूरी में लगाया जाता है। इसके लिए एक पतले कुदाली से 8 ईंच की दूरी पर 1 से 1.5 ईंच गहरी नाली बनाते हैं, और इसमें 8 ईंच की दूरी पर 2 बीज डालते हैं और उसके बाद मिट्टी से ढक देते हैं, यदि एक सप्ताह के बाद जिस जगह बीज नहीं अंकुरते हैं वहाँ नया बीज लगा देते हैं।
खेती की देखभाल
गेहूं की श्री विधि से बुआई के 15 दिनों के बाद एक सिंचाई देना जरूरी है, क्योंकि इसके बाद से पौधों में नई जड़े आनी शुरु होती है, यदि जमीन में नमी न हो, तो पौधा नई जड़े नहीं बनाएगा एवं बढ़वार रुक जाएगी। सिंचाई के बाद 40 किलो यूरिया और 4 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट को मिलाकर बुरकाव कर दें। सिंचाई के 2 से 3 दिन बाद पतले कुदाल या वीडर से मिट्टी को ढीला करें, साथ ही खरपतवार भी निकाल दें। यह करना अति आवश्यक है, नहीं तो सिंचाई और खाद देने के बाद खेत में खरपतवार उग जायेंगे। इस प्रकार की कोड़ाई करने से गेहूं के पौधे की जड़ों को लंबा होने में मदद मिलती है और वे मिट्टी से ज्यादा पोषण और नमी प्राप्त करते है।
देखभाल बुआई के 25 दिनों के बाद
बुआई के 25 दिनों के बाद दूसरी सिंचाई देना चाहिए, क्योंकि इसके बाद से पौधों में नए कल्ले तेजी से आने शुरु होते हैं एवं नए कल्ले बनाने के लिए पौधों को अधिक नमी और पोषण की जरुरत होती है। सिंचाई के 2 से 3 दिन बाद पतले कुदाल या वीडर से मिट्टी को ढीला करें, साथ ही साथ खरपतवार भी निकाल दें, यह करना आवश्यक हैं, नही तो सिंचाई देने के बाद खेत में खरपतवार उगना शुरू हो जायेंगे।
देखभाल बुआई के 40 दिनों के बाद
बुआई के 35 से 40 दिनों के बाद तीसरी सिंचाई देना चाहिए, इसके बाद से पौधे तेजी से बड़े होते हैं, साथ ही नए कल्ले भी आते रहते हैं। इसके लिए पौधों को अधिक नमी एवं पोषण की जरूरत होगी। इसलिए सिंचाई के तुरंत बाद 15 किलोग्राम यूरिया और 13 किलोग्राम पोटाश खाद प्रति एकड़ जमीन के हिसाब से बुरकाव करें। सिंचाई के 2 से 3 दिन बाद पतले कुदाल या वीडर से मिट्टी को ढीला करें और खरपतवार को निकाल दें, इससे मिट्टी ढीली होगी, जड़ों को हवा मिलेगी एवं पौधे तेजी से बढ़ेंगे।
फसल की देखभाल बुआई के 60 दिनों के बाद
गेहूं की फसल में अगली सिंचाई 60वें, 80वें और 100वें दिनों पर की जाती है। यह समय मिट्टी के प्रकार और मौसम पर निर्भर करता है। ध्यान देने की बात यह है, कि फूल आने के समय और दानों में दूध भरने के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए, नहीं तो उपज में काफी कमी होती है।फूल आना और दानों में दूध भरने का समय एक महत्वपूर्ण अवस्था है, इस समय पानी की कमी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए।इस प्रकार उपरोक्त विधि से किसान भाई गेहूं की श्री विधि से सफलतापुर्वक खेती कर सकते है, और इस गेहूं की श्री विधि खेती से गेहूं की औसत पैदावार 19 क्विंटल प्रति एकड़ पाई गई है।