जरूरत के मुताबिक सरसों की किस्मों का करें चयन

नेशनल कृषि मेल
किसान भाईयों के सामने कई बार बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है कि कौन सी किस्में लगाई जाएं और कौन सी नहीं लगाईं जाएं। अभी रबी का सीजन है और सरसों लगाने वाले किसानों में मन भी ऐसे ही विचार आ रहे होंगे। उनकी समस्या का समाधान नेशनल कृषि मेल करने की कोशिश कर रहा है। फिर किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि सरसों की किस्में लगाने से पहले एक बार कृषि विशेषज्ञ से चर्चा जरूरत कर लें। यहां कुछ किस्मों के बारे में बताया जा रहा है तो आपके लिए उपयोगी सावित हो सकतीं हैं। सरसों की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं:-
आर. एच 30 
इस किस्म की सारे उत्तरी भारत के असिंचित एवं सिंचित क्षेत्रों के लिए सिफारिश की जाती है। पछेती बिजाई में भी यह अन्य किस्मों से अधिक पैदावार देती है। इसको नवम्बर के अन्त तक बोया जा सकता है। इसका बीज मोटा होता है, 5.5 से 6.0 ग्राम प्रति 1000 बीज का वजन, पकने के समय फलियां नहीं झड़तीं, मिश्रित खेती के लिए यह एक उत्तम किस्म है, यह 135 से 140 दिन में पकती हैं, इसकी औसत उपज 9 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ है, और तेल अंश 40 प्रतिशत है।


टी 59 (वरूणा)
यह किस्म कानपुर (उत्तर प्रदेश) में विकसित की गई है। यह उत्तरी भारत में सभी स्थितियों के लिए एक उपयुक्त किस्म है, यह 140 से 142 दिन में पकती है, इसका बीज मोटा होता है, 5 से 5.5 ग्राम प्रति 1000 दानो का वजन, और पैदावार 8 से 9 क्विंटल प्रति एकड़ है और तेल अंश 40 प्रतिशत है।


आरएच 8113 (सौरभ) 
यह किस्म 150 दिन में पक कर तैयार हो जाती है, यह लम्बी बढ़ने और घनी शाखाओं वाली किस्म है, जिसके नीचे के पत्ते चौड़े, धारियां लम्बी तथा मध्य-शिरा चौड़ी होती है। इसकी औसत उपज 9 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ है, बीज मध्यम आकार के बीज भार 3.5 ग्राम प्रति 1000 दाने एवं गहरा-भूरा रंग लिए होते हैं, जिनमें 40 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है, इस किस्म की विशेषता यह है, कि आल्टरनेरिया, सफेद रतुआ तथा डाऊनी मिल्ड्यू रोगों की मध्यम प्रतिरोधी है।


आर.बी. 50 
इस किस्म को 2009 में भारतवर्ष के जोन-2 (हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश व राजस्थान के कुछ हिस्सों) में बारानी क्षेत्रों के लिए केन्द्रीय किस्म विमोचन समिति ने विमोचित किया है। इसकी फलियां लम्बी और मोटी है, यह अधिक बढ़ने वाली 194 से 207 सेंटीमीटर मध्यम समय में पकने वाली 146 दिन व मोटे दाने 5.5 से 6.0 ग्राम प्रति 1000 दाने वजन, वाली किस्म है, समय पर बिजाई से बारानी क्षेत्रों में इसकी औसत पैदावार 7.2 क्विंटल प्रति एकड़ है। इसमें तेल अंश 39 प्रतिशत है।


आर.एच. 8812(लक्ष्मी)
यह अधिक उपज देने वाली किस्म है, जिसकी सारे उत्तरी राज्यों में समय पर बिजाई और सिंचित क्षेत्रों के लिए सिफारिश करते हैं, इस किस्म की पत्तियां छोटी, शाखाओं का रुख ऊपर की ओर एवं तना और शाखायें चमक रहित होती है, फलियां मोटी, बीज मोटे व काले रंग के होते है, इसकी औसत पैदावार 9 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ हैं, यह किस्म 142 से 145 दिन में पकती है और तेल अंश 40 प्रतिशत है।


आर एच 781 
इस किस्म की मुख्य विशेषतायें इस प्रकार हैं, पकने में 140 दिन, ऊँचाई मध्यम 180 सेंटीमीटर भरपूर फुटाव एवं टहनियां, मध्यम आकार का दाना 4.2 ग्राम प्रति1000 बीज वजन, और तेल अंश 40 प्रतिशत, इसकी औसत पैदावार 7 से 8 क्विंटल प्रति एकड़ है एवं यह पाला व सर्दी की सहनशील है।


आर एच 819 
यह किस्म बारानी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है, यह लम्बी 226 सेंटीमीटर मध्यम समय 148 दिन में पकने वाली और मध्यम आकार के दानों 4.5 ग्राम प्रति 1000 बीज वजन, वाली किस्म है, इसका तेल अंश 40 प्रतिशत है, इसके पत्ते गहरे रंग के, टहनियां भरपूर एवं छोटी होती हैं, बारानी क्षेत्रों में इसकी औसत पैदावार 5.5 क्विंटल प्रति एकड़ है जो कि आर एच 30 तथा वरूणा से क्रमश: 10 तथा 30 प्रतिशत अधिक है।


आरएच 9304 (वसुन्धरा) 
इस किस्म को वर्ष 2002 में केन्द्र ने भारतवर्ष में जोन-3 (उत्तरप्रदेश, उत्तरांचल, मध्यप्रदेश व राजस्थान के कुछ हिस्सों के लिए अनुमोदित किया है और इसकी सिफारिश हरियाणा राज्य के भी सिंचित क्षेत्रों के लिए की गई है, इस किस्म की मुख्य विशेषतायें इस प्रकार हैं- पकने में 130 से 135 दिन, ऊँचाई मध्यम 180 से 190 सेंटीमीटर भरपूर फुटाव एवं टहनियां, मोटे दानों वाली, 5.6 ग्राम प्रति 1000 बीज वजन और तेल अंश 40 प्रतिशत, इसकी औसत पैदावार 9.5 से 10.5 क्विंटल प्रति एकड़ और पकने के समय इसकी फलियां नहीं झड़तीं एवं उच्च तापमान के प्रति मध्यम सहनशील है।


आर एच 9801 (स्वर्ण ज्योति) 
इस किस्म को आर.सी. 1670 से विकसित किया गया है और केन्द्र ने देश के जोन-3 (उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, मध्य प्रदेश व राजस्थान के कुछ हिस्सों) के लिए वर्ष 2002 में अनुमोदित किया है, इस किस्म की सारे उत्तर भारत के सिचिंत क्षेत्रों के लिए पछेती बिजाई में सिफारिश की जाती है, इसकी औसत उपज 8 से 9 क्विंटल प्रति एकड़ है और इसको नवम्बर के अन्त तक भी बीजा जा सकता है, यह 125 से 130 दिन पककर तैयार हो जाती है, तेल की मात्रा 40 प्रतिशत है।


आर एच 0406 
इस किस्म का भारतवर्ष के जोन-2 हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और राजस्थान के कुछ क्षेत्र के बारानी क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए अनुमोदन सन् 2012 में किया गया है, इस किस्म की ऊँचाई मध्यम है एवं यह पकने के लिए 142 से 145 दिन लेती है, यह किस्म मोटे दानों वाली 5.5 ग्राम प्रति1000 बीज वजन और इसमें फलियों की स्थिति में झुकाव प्रतिरोधकता भी है, इस किस्म में तेल अंश 39 प्रतिशत तथा इसकी औसत उपज 8.5 से 9.5 क्विंटल प्रति एकड़ है, यह किस्म सिंचित अवस्था में भी अच्छी पैदावार दे देती है।


आर एच 0749
इस किस्म की सन् 2013 में भारतवर्ष के जोन-2 हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और राजस्थान के कुछ क्षेत्र के सिंचित क्षेत्रों में समय पर बिजाई के लिए सिफारिश की गई है, यह 145-148 दिनों में पकती है एवं इसकी मध्यम ऊँचाई होती है, इस किस्म की फलियां लंबी और मोटी होती हैं, वे दाने का आकार भी बड़ा 5.8 ग्राम प्रति 1000 बीज वजन होता है, इसमें तेल मी मात्रा 39 से 40 प्रतिशत तथा इसकी औसत पैदावार 10.0 से 11.5 किंवटल प्रति एकड़ है।


आर बी 9901 (गीता) 
यह किस्म भारत के उत्तरी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली एवं राजस्थान के कुछ हिस्सों में बारानी क्षेत्रों के लिए केन्द्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा दिसम्बर 2002 में विमोचित की गई है, इसके पौधों की फलियों में दाने चार पंक्तियों में होते हैं, यह किस्म समय पर बिजाई करने पर बारानी क्षेत्रों में अन्य सिफारिश की गई किस्मों से अधिक उपज देती है, यह किस्म 140 से 147 दिन में पक कर 7 से 8 क्विंटल प्रति एकड़ औसत उपज देती है, इस किस्म के दाने मोटे होते हैं तथा इनमें तेल की मात्रा 40 प्रतिशत होती है, यह किस्म सफेद रतुआ के लिए मध्यम रोधी है।


भूरी सरसों हरियाणा 1 
हरियाणा में खेती के लिए यह किस्म 1966 में दी गई थी, यह लगभग 136 दिन में पकती है, इसकी प्रति एकड़ औसत पैदावार 5 क्विंटल है और तेल की मात्रा 45 प्रतिशत है।


वाई एस एच 0401 
इस किस्म को 2008 में सम्पूर्ण भारतवर्ष के पीली सरसों बोने वाले क्षेत्रों के लिए और सिंचित क्षेत्रों के लिए समस्पर बिजाई के लिए अनुमोदित किया गया है, यह कम अवधि 115 से 120 दिन में पकने वाली एवं अधिक तेल मात्रा 45 प्रतिशत वाली किस्म है, इसकी औसत पैदावार 6.5 से 7.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।