जैविक गेंहू दिलाएगा ज्यादा दाम: ये रही उत्पादन की विधि

एनकेएम
बीपी और शुगर जैसी तमाम ऐसी बीमारियां हैं जो अमूमन प्रत्येक घर में पाई जातीं है। जिसके लिए तमाम कारणों में से एक कारण जहरीले रसायनों को माना गया है। भोजन के से माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर रहा यह जहर रोकने में किसान भाई देश हित में अपना योगदान दे सकते हैं। इसके लिए उन्हे जैविक खेती करना होगी। इससे खेती की उत्पादन लागत कम होगी और दाम भी ज्यादा मिलेगा। हम बात करते हैं जैविक गेहूं के उत्पादन की। यदि किसान भाई निम्नानुसार विधि से जैविक गेंहू लगाएंगे तो उपज ज्यादा,कम लागत और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। गेहूं की जैविक खेती उत्पादन की वह पद्धति है, जिसमें फसलों के उत्पादन हेतु प्राकृतिक संसाधनों जैसे- गोबर की सड़ी खाद, हरी खाद, जैव उर्वरकों इत्यादि का प्रयोग फसलों को पादप पोषण और रसायन रहित कीट, रोग एवं खरपतवार नियंत्रण हेतु किया जाता है। इसका आशय यह है, कि गेहूं की जैविक खेती में संश्‍लेषित रसायनों, उर्वरकों, रसायनिक कीट एवं रोग नियंत्रकों और वृद्धि कारक तत्वों का प्रयोग वर्जित है।गेहूं भारत की एक प्रमुख धान्य फसल है, जिसकी खेती भारत के करीब सभी राज्यों में की जाती है। जिसमें मुख्यतः अधिक उत्पादन राज्य के मैदानी क्षेत्रों में है। इसका मुख्य कारण यह है, कि मैदानी क्षेत्रों में गेहूं अधिकांशतः सिंचित और उपजाऊ भूमि में पैदा किया जाता है। यदि यहाँ पर रासायनिक खादों एवं उर्वरकों की अपेक्षा जैविक खादों का प्रयोग किया जाय तो भूमि की उर्वरता व जलधारण क्षमता लम्बे समय तक बनी रहती है साथ ही साथ लागत भी कम लगती है। इसलिए गेहूं की जैविक से अधिक उपज लेने हेतु भारत के मैदानी उपजाऊ क्षेत्रों में गेहूं की जैविक उत्पादन हेतु निम्नलिखित सस्य प्रक्रियाएं अनुमोदित हैं।


ऐसे करें खेत का चयन 
गेहूं की जैविक खेती के लिए सभी प्रकार की भूमि उपयुक्त रहती है। अच्छी उत्पादकता के लिए बुलई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है, जिसमें पौध की बढ़वार और जड़ों का विकास अच्छी प्रकार होता है।


खेत की तैयारी और खाद की मात्रा
गेहूं की जैविक खेती के लिए बुवाई से 15 दिन पूर्व खेत में 30 से 40 टन प्रति हैक्टेयर अच्छी सड़ी गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट 25 से 30 टन प्रति हैक्टेयर बिखेरने के बाद खेत की अच्छी जुताई करें एवं पाटा चलाकर खेत समतल कर लें। बारानी खेती में कड़ी धूप में गहरी जुताई युक्त खेत को न छोड़ें, इससे मृदा नमी में कमी आ जाती है। जिससे अपेक्षित मात्रा में बीज जमाव नहीं होता है। अच्छी सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट 2.0 क्विंटल प्रति हैक्टेयर में 2.5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर ट्राइकोडर्मा पाउडर बुवाई से 10 से 15 दिन पूर्व मिला लें एवं ढेर को अच्छी तरह जूट के बोरे या पुवाल से वायुरूद्ध करें। गेहूं की जैविक खेती के लिए बुवाई से पूर्व उपचारित खाद को खेत में फैला लें, ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से फफूंद और कवक जनित रोगों की रोकथाम प्रभावी ढंग से हो जाती है।


गेहूं की जैविक हेतु अनुमोदित किस्में  
किस्मों का चुनाव क्षेत्रीय अनुकूलता और बीजाई के समय को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए, ताकि इनकी उत्पादन क्षमता का लाभ लिया जा सके। गेहूं की जैविक खेती के लिए किसानों को स्थानीय किस्मों तथा देशी किस्मों की बुवाई को अपनाना चाहिए। सामान्य किसानों के हितों को दृष्टिगत रखते हुये हम प्रचलित उन्नत किस्मों के तरफ जाने को कहेंगे। जिनकी विस्तृत जानकारी आप यहां से प्राप्त करें- गेहूं की उन्नत किस्में, जानिए बुआई का समय, पैदावार क्षमता एवं अन्य विवरण


बुवाई का समय
* मैदानी और मध्य पर्वतीय क्षेत्र (समुद्रतल से 1,700 मीटर तक)
अगेती (जल्दी) बुवाई- सितम्बर अन्त से अक्टूबर द्वितीय पक्ष
समय से बुवाई- अक्टूबर द्वितीय पक्ष नवम्बर द्वितीय पक्ष
देर से बुवाई- नवम्बर द्वितीय पक्ष के बाद


* ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र (समुद्रतल से 1,700 मीटर से अधिक)
समय से बुवाई- सितम्बर अन्त से अक्टूबर माह
देर से बुवाई- नवम्बर द्वितीय पक्ष तक।