गेंहू की बेहतर गुणवत्ता के लिए सही ढंग से बोनी और खेत की तैयारी जरूरी

नेशनल कृषि मेल
रबी सीजन में अधिकांश किसान गेंहू की फसल लगाते हैं। जिसमें कई बार उसकी गुणवत्ता प्रभावित हो जाती है तो कई बार रोग आदि से भी फसल खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। परिणामत: उत्पादन कम होता है और उपज का दाम भी सही नहीं मिल पाता है। ऐसे में किसान भाईयों को चाहिए कि वैज्ञानिकों द्बारा बताई गई तकनीक से फसल लगाएं तो इस समस्या से निजात मिल सकती है।
कब करें गेंहू की बोनी
उत्तर-पश्‍चिमी मैदानी क्षेत्रों में सिंचित दशा में गेहूं बोने का उपयुक्त समय नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा है। लेकिन उत्तरी-पूर्वी भागों में मध्य नवम्बर तक गेहूं बोया जा सकता है। देर से बोने के लिए उत्तर-पश्‍चिमी मैदानों में 25 दिसम्बर के बाद तथा उत्तर-पूर्वी मैदानों में 15 दिसम्बर के बाद गेहूं की बुवाई करने से उपज में भारी हानि होती है। इसी प्रकार बारानी क्षेत्रों में अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक बुवाई करना उत्तम रहता है। यदि भूमि की ऊपरी सतह में संरक्षित नमी प्रचुर मात्रा में हो तो गेहूं की बुवाई 15 नवम्बर तक कर सकते हैं।
कितने बीज की होती है जरूरत
बीज साफ, स्वस्थ एवं खरपतवारों के बीजों से रहित होना चाहिए। सिकुड़े, छोटे एवं कटे-फटे बीजों को निकाल देना चाहिए। हमेशा उन्नत, नई तथा क्षेत्र विशेष के लिए संस्तुत प्रजातियों का चयन करना चाहिए। बीज दर दानों के आकार, जमाव प्रतिशत, बोने का समय, बोने की विधि और भूमि की दशा पर निर्भर करती है। सामान्यतः यदि 1000 बीजों का भार 38 ग्राम है, तो एक हेक्टेयर के लिए लगभग 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। यदि दानों का आकार बड़ा या छोटा है, तो उसी अनुपात में बीज दर घटाई या बढ़ाई जा सकती है। इसी प्रकार सिंचित क्षेत्रों में समय से बुवाई के लिए 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त होता है। लेकिन सिंचित क्षेत्रों में देरी से बोने के लिए 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। लवणीय तथा क्षारीय मृदाओं के लिए बीज दर 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए। सदैव प्रमाणित बीजों का प्रयोग करना चाहिए और हर तीसरे वर्ष बीज बदल देना चाहिए।
बीज उपचार बेहद जरूरी
गेहूं की खेती अधिक उपज के लिए बीज अच्छी किस्म का प्रमाणित ही बोना चाहिये तथा बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थाइरम या 2.50 ग्राम मैन्कोजेब से उपचारित करना चाहिये। इसके उपरान्त दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरीफोस की 4 मिलीलीटर मात्रा से तथा अंत में जैव उर्वरक एजोटोबैक्टर व पी एस बी कल्चर के तीन-तीन पैकिट से एक हैक्टर में प्रयोग होने वाले सम्पूर्ण बीज को उपचारित करने के बाद बीज को छाया में सूखा कर बुवाई करनी चाहिये।


बुवाई की विधि एवं अन्तराल
गेहूं की खेती हेतु बुवाई सीड ड्रिल या देशी हल (केरा या पोरा) से ही करनी चाहिए। छिड़काव विधि से बोने से बीज ज्यादा लगता है तथा जमाव कम, निकाई-गुड़ाई में असुविधा तथा असमान पौध संख्या होने से पैदावार कम हो जाती है। सीड ड्रिल की बुवाई से बीज की गहराई और पंक्तियों की दूरी नियन्त्रित रहती है तथा इससे जमाव अच्छा होता है। विभिन्न परिस्थितियों में बुवाई हेतु फर्टी-सीड ड्रिल (बीज एवं उर्वरक एक साथ बोने हेतु), जीरो टिल ड्रिल (जीरो टिलेज या शून्य कर्षण में बुवाई हेतु), फर्ब ड्रिल (फर्ब बुवाई हेतु) आदि मशीनों का प्रचलन बढ़ रहा है।
रखे जरूरी सावधानियां
इसी प्रकार फसल अवशेष के बिना साफ किए हुए अगली फसल के बीज बोने के लिए रोटरी-टिल ड्रिल मशीन भी उपयोग में लाई जा रही है। सामान्यतः गेहूं को 15 से 23 सेंटीमीटर की दूरी पर पंक्तियों में बोया जाता है। पंक्तियों की दूरी मिटटी की दशा, सिंचाईयों की उपलब्धता तथा बोने के समय पर निर्भर करती है। सिंचित एवं समय से बोने हेतु पंक्तियों की दूरी 23 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। देरी से बोने पर और ऊसर भूमियों में पंक्तियों की दूरी 15 से 18 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। सामान्य दशाओं में बौनी किस्मों के गेहूं को लगभग 5 सेंटीमीटर गहरा बोना चाहिए, ज्यादा गहराई में बोने से जमाव तथा उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता हैं। बारानी क्षेत्रों में जहाँ बोने के समय भूमि में नमी कम हो वहाँ बीज को कूड़ों में बोना अच्छा रहता है। बुवाई के बाद पाटा नहीं लगाना चाहिए, इससे बीज ज्यादा गहराई में पहुँच जाते हैं, जिससे जमाव अच्छा नहीं होता है।