ऐसे तय किया जाता है समर्थन मूल्य


एनकेएम,नई दिल्ली
केन्द्र सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिश पर कुछ फसलों के बुवाई सत्र से पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है। इससे किसानों को यह सुनिश्‍चित किया जाता है कि बाजार में उनकी फसल की कीमतें गिरने के बावजूद भी सरकार उन्हें तय न्यूनतम समर्थन मूल्य देगी।


ये रहा मूल उद्देश्य
न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था इसलिए लाई गई है ताकि बाजार में फसल की कीमतें कम होने के बाद किसानों को मजबूरीवश अपनी फसल कम कीमत पर न बेचनी पड़े। न्यूनतम समर्थन मूल्य तब काम आता है, जब बंपर उत्पादन समेत अन्य वजहों से बाजार में फसल की कीमत काफी गिर जाती है। तो ऐसे मौके पर सरकार किसानों से न्यूनतम मूल्य पर फसल खरीद लेती है।


इन्हे ध्यान में रखकर तय होती हैं समर्थन मूल्य
जब भी सीएसीप न्यूनतम समर्थन मूल्य की अनुशंसा करता है, तो वह कुछ बातों को ध्यान में रखकर ही इसे तय करता है। इसके लिए
- उत्पाद की लागत क्या है
- इनपुट मूल्यों में कितना परिवर्तन आया है
- बाजार में मौजूदा कीमतों का क्या रुख है
- मांग और आपूर्ति की स्थिति क्या है
- अंतरराष्ट्रीय मूल्य स्थिति
- इसके अलावा सीएसीपी स्थानीय, जिले और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्थितियों का जायजा लेने के बाद ही सब तय करता है


क्या होता न्यूनतम समर्थन मूल्य?
किसानों के हितों की रक्षा करने की खातिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू की गई है। अगर कभी फसलों की कीमत गिर जाती है, तब भी सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है। इसके जरिये सरकार उनका नुकसान कम करने की कोशिश करती है।


इनका मिलता है समर्थन मूल्य
अनाज
धान, गेहूं, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी


दाल 
चना,अरहर/तूर, मूंग, उड़द और मसूर


तिलहन 
मूंगफली, सरसों, तोरिया, सोयाबीन, सुरजमुखी के बीज, सीसम, कुसुम्भी और खुरसाणी, खोपरा, कच्चा कपास, कच्चा जूट, गन्ना, वर्जीनिया फ्लू उपचारित (बीएफसी) तम्बाकू, नारियल शामिल है।