उपज ज्यादा हो या कम घाटा किसान को ही होता है ?

नेशनल कृषि मेल,वीरेन्द्र विश्‍वकर्मा
कहते हैं चाकू खरबूजे पर गिरे या खरबूजा चाकू पर कटना खरबूजे को ही होता है। यह वाक्य किसानों पर भी लागू होता दिखाई देता है। किसान हाड़तोड़ परिश्रम करने के बाद ज्यादा उत्पादन ले या कम,नुकसान किसानों का ही होता है। खासतौर से प्याज जैसी उद्यानिकी फसलों में इस तरह के जोखिम कुछ ज्यादा ही होते हैं। अभी प्याज 60 से 100 रुपए प्रति किलो बिक रही है। लोग सोच रहे होंगे कि इससे किसान को फायदा होता होगा,जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। प्याज मंहगी बिके या सस्ती किसान को मुनाफा न के बराबर ही होता है। यदि किसी को मुनाफा होता है तो वो दलाल और कुछ कथित व्यापारी और जमाखोर होते हैं जो किसाने के हक पर डंडी मारकर अपना मुनाफा कमाते हैं। हम प्याज की बात करें तो कई बार प्याज का उत्पादन ज्यादा होने पर किसान को बिलकुल भी भाव नहीं मिलता है। यहां तक की मंडी तक प्याज ले जाने में जो परिवहन पर खर्चा होता है वो भी नहीं निकलता है। किसान कभी सड़क पर फेंकता है तो कभी खेत में ही फसल छोड़ देता है। आंदोलन होते हैं लेकिन परिणाम के नाम पर कुछ हाथ नहीं लगता।
44,000 करोड़ रुपए का होता है नुकसान
प्याज की कीमते बढ़ना और घटना कोई नई बात नहीं है। इसके बात भी इस समस्या का पुख्ता समाधान आज तक नहीं निकाला गया। सबसे बड़ी दिक्कत है कि प्याज को प्रसंस्कृत करने की पुख्ता व्यवस्था इस देश में नहीं है। उसके सड़ने की संभावना ज्यादा इसलिए होती है कि कोल्ड स्टोरेज जरूरत के मुताबिक नहीं हैं। इमर्सन क्लाइमेट टेक्नोलॉजीज इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सालाना 44,000 करोड़ रुपए का फल-सब्जी और अनाज बर्बाद हो जाता है। सीफेट की ही एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में लगभग 6.1 करोड़ टन कोल्ड स्टोरेज की जरूरत है, ताकि बड़ी संख्या में फल, अनाज के साथ खाद्यान्न खराब न हो। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश भर में हर साल कोल्ड स्टोरेज के अभाव में 10 लाख टन प्याज बाजार में नहीं पहुंच पाता है। 
भंडारण क्षमता 3.1 करोड़ टन, जरूरत है 3.1 करोड़ टन की
देशभर में फल-सब्जियों के भंडारण के लिए जितने कोल्ड स्टोरेज हैं, लगभग उतने ही और चाहिए। देशभर में इस समय भारत सरकार की रिपोर्ट की मानें तो 6300 कोल्ड स्टोरेज हैं, जिनकी भंडारण क्षमता 3.1 करोड़ टन है। जबकि देश में लगभग 6.1 करोड़ टन कोल्ड स्टोरेज की जरूरत है ताकि बड़ी संख्या में फल, अनाज के साथ खाद्यान्न खराब न हो और किसानों को इसका लाभ मिले।
क्यों बढ़ी प्याज की कीमतें ? 
वर्ष 2018-19 में भारत ने 3,468 करोड़ रुपए में 2.1 करोड़ कुंतल प्याज निर्यात किया। जबकि इस वर्ष प्याज आयात करने की नौबत नहीं आई। इसके पिछले वर्ष 2017-18 में भारत ने लगभग 11 करोड़ रुपए से 65925.85 कुंतल प्याज आयात किया जबकि 3088 करोड़ रुपए का 15.88 लाख कुंतल प्याज निर्यात भी किया। लेकिन 2019-20 की स्थिति ठीक नहीं लग रही। बढ़ी कीमतों को रोकने के लिए केंद्र सरकार दो हजार कुंतल प्याज आयात करने जा रही है, जबकि हम इस सीजन में 35.23 लाख कुंतल प्याज निर्यात भी कर चुके हैं। इस वर्ष के निर्यात के आंकड़े अप्रैल से मई, 2019 के बीच के हैं। इस साल जब हमने प्याज दूसरे देशों को बेचा तब हमारे देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव, नासिक में प्याज की कीमत 500 से 1000 रुपए प्रति कुंतल थी। आज मतलब निर्यात के ठीक तीन महीने बाद जब हम प्याज दूसरे देशों से मंगा रहे हैं, तब इसी मंडी में प्याज की कीमत 2300 से 4000 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंच चुकी है। मतलब जब किसानों के पास माल ज्यादा था तब हमने उसे सस्ते दामों में बेचा और वही प्याज ज्यादा कीमत में खरीद रहे हैं।
क्या कर रही सरकार
सरकार क्या कर रही है सरकार कीमत नियंत्रित करने के लिए 2000 हजार टन प्याज का आयात कर रही है। इसकी पहली खेप अफागानिस्तान से आ भी चुकी है। केंद्रीय खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान ने ट्वीटकर जानकारी दी कि बाजार में प्याज की आपूर्ति बढ़ाने के लिए दो अधिकारियों को महाराष्ट्र भेजा गया है। ये दोनों अधिकारी व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों से बात करेंगे और प्याज की उपलब्धता का आकलन करेंगे साथ ही कोशिश करेंगे कि बाजार में अधिक से अधिक प्याज बाजार आ सके। सरकार ने राज्यों को भी निर्देश दिया है कि वो खुदरा बिक्री के लिए केंद्र सरकार के पास उपलब्ध बफर स्टॉक का उपयोग करें। इसके लिए मांग के अनुसार केंद्र सरकार को सूचित करने के लिए भी कहा गया है। अब तक हरियाणा, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, त्रिपुरा और ओडिशा ने इस केंद्र सरकार के बफर से प्याज की मांग की है। वहीं नाफेड को दिल्ली में मदर डेयरी, सफल और स्वयं अपनी दुकानों के माध्यम से प्याज 24 रुपए प्रति किलो से ज्यादा नहीं बेचने के लिए कहा गया है।