किसानों की आमदनी बढ़ा सकता है कड़कनाथ

नेशनल कृषि मेल
कड़कनाथ वो मुर्गा है जो तमाम खूबियों को समेटे हुए। इन्ही खूबियों के कारण इसकी बाजार में मांग बहुत ज्यादा है। लोग इसकी कीमत आपकी अपेक्षानुसार दे देते हैं। मप्र में पायी जाने वाली यह नस्ल काली मासी के नाम से भी जानी जाती है। इसके अच्छे स्वाद वाले मीट उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है और काला होता है। यहां तक की इसका मांस और हड्डिया भी काली होतीं है और जीभ का रंग जामुनी होता है। मादा कड़कनाथ मुख्यत: प्रतिवर्ष 80 अंडों का उत्पादन करती है। इसके अंडे का औसतन भार 46.8 ग्राम होता है। यह मुर्गा कई तरह की बीमारियों में भी काम आता है। इसका मांस स्वास्थ्यवर्धक भी माना जाता है। यही कारण है कि किसानों के लिए कड़कनाथ को पालना आमदनी का बहुत अच्छा जरिया हो सकता है।
कड़कनाथ का पोष्टिक भोजन
0-10 सप्ताह के मुर्गी के बच्चों के आहार में 10-20 प्रतिशत प्रोटीन होना जरूरी है। मीट पक्षियों जैसे तीतर, बटेर और टर्की के लिए 22-24 प्रतिशत प्रोटीन आवश्यक होता है। प्रोटीन की उच्च मात्रा से मुर्गी के बच्चों को वृद्धि करने में मदद मिलती है। वृद्धि के लिए उनके आहार में लगभग 15-16 प्रतिशत प्रोटीन होना जरूरी है और लेयरर्स के लिए उनके आहार में 16 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होनी जरूरी है। मुर्गी के बच्चों के पहले पानी में 1/4 कप चीनी और 1 चम्मच टैरामाइसिन/ गैलोन शामिल होना चाहिए और दूसरे पानी में 1 चम्मच टैरामाइसिन शामिल होना चाहिए और फिर उसके बाद सामान्य पानी दिया जाना चाहिए। प्रत्येक चार बच्चों को एक चौथाई पानी दें। पानी ताजा और साफ होना चाहिए। शारीरिक फैट और तापमान को संतुलित बनाए रखने के लिए कार्बोहाइड्रेट्स जरूरी होते हैं। इसके लिए उन्हें एनर्जी की जरूरत होती है जो कि कार्बोहाइड्रेट्स से आती है। उनके भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए क्योंकि इसे पचाना उनके लिए मुश्किल होता है। खनिज सामग्री का उपयोग हड्डियों और अंडों को बनाने के लिए  और अन्य शारीरिक कार्यों के लिए किया जाता है। खनिज सामग्री में कैल्शियम, मैगनीशियम, सोडियम, पोटेशियम, फास्फोरस, क्लोरीन, सल्फर, मैगनीज़, आयरन, कॉपर, आयोडीन, जिंक, कोबाल्ट और सेलेनियम शामिल हैं। मुख्य रूप से इन सामग्रियों को फीड से प्राप्त किया जाता है।
कैसे करें देख रेख
मुर्गी पालन के लिए उपयुक्त ज़मीन का चयन किया जाना चाहिए जहां पर ज्यादा से ज्यादा बच्चे और अंडे विकसित हो सकें। शैल्टर सड़क से कुछ ऊंचाई पर होना चाहिए ताकि बारिश का पानी आसानी से बाहर निकल जाये और इससे उनका बाढ़ से भी बचाव होगा। शैल्टर में ताजे पानी का प्रबंध भी होना चाहिए। 24 घंटे बिजली की आपूर्ति होनी चाहिए। मुर्गियों का आश्रय औद्योगिक और शहरी क्षेत्र से दूर होना चाहिए क्योंकि इससे मुर्गियों की खादें वातावरण में प्रदूषित होंगी और मक्खियों की समस्या भी होगी । ऐसा आश्रय चुनें जो शोर रहित हो। शोर की समस्या पक्षियों के उत्पादन पर प्रभाव डालेगी। फैक्टरियों का धुआं भी पक्षियों पर प्रभाव डालता है। मुर्गियों के नन्हें बच्चों की वृद्धि के लिए उचित ध्यान और इनक्यूबेटर की आवश्यकता होती है। अंडों को उपयुक्त तापमान देकर 21 दिनों के लिए इनक्यूबेटर में रखा जाता है। अंडे सेने के बाद बच्चों को 48 घंटे बाद इनक्यूबेटर से निकाल लिया जाता है। इनक्यूबेटर से निकालने के दौरान बच्चों की संभाल बहुत सावधानी से की जानी चाहिए। इनक्यूबेटर से बच्चों को निकालने के बाद उन्हें ब्रूडर में रखा जाता है। पहले सप्ताह के लिए ब्रूडर का तापमान 95 डिगरी फार्नाहीट होना जरूरी है और प्रत्येक सप्ताह इसका तापमान 5 डिगरी फार्नाहीट कम करना जरूरी है। बच्चों को उचित फीड  उचित समय पर देनी चाहिए और ब्रूडर में ताजा पानी हर समय उपलब्ध होना चाहिए।
बीमारियों से बचाव वाले टीके   
मुर्गी के बच्चों की अच्छी वृद्धि के लिए अपडेट किया गया टीकाकरण भी आवश्यक है। कुछ मुख्य टीके और दवाइयां जो कि मुर्गियों की अच्छी सेहत बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। हॉ इतना जरुर है कि विशेषज्ञ की सलाह पर ही किसान भाई टीके लगवाएं और समय समय पर उनसे जांच करवाते रहें। जब बच्चा एक दिन का हो तो उसे बीमारी से बचाने के लिए टीका लगवाएं। इस टीके का प्रभाव 18 महीनों तक रहेगा। 4-7 दिन का हो तो उसे रानीखेत बीमारी से बचाने के लिए टीका लगवाएं इस टीके का प्रभाव 2-4 महीने तक रहेगा। 18-21 दिन का हो तो उसे गुमबोरो बीमारी से बचाने के लिए टीका लगवाएं। 4-5 सप्ताह का हो तो उसे रानीखेत बीमारी से बचाने के लिए टीका लगवाएं। इसी तरह जब बच्चा 6-8 सप्ताह का हो तो उसे रानीखेत बीमारी से बचाने के लिए टीका लगवाएं। 8-10 सप्ताह का हो तो उसे चिकन पॉक्स बीमारी से बचाने के लिए चिकन पॉक्स का टीका लगवाएं।
बीमारियां और रोकथाम
र्ब्ड फ्लू इन्फ्लूएंजा के कारण होता है और यह 100 प्रतिशत मौत दर को बढ़ाता है। यह संक्रमण श्‍वास नाली, आंसू और व्यर्थ पदाथों से आता है। यह बीमारी एक मुर्गी से दूसरी मुर्गी में बड़ी जल्दी फैलती है। यह अस्वस्थ खाना और पानी के बर्तन, कपड़ों से भी फैल सकती है। इसके लक्षण हैं - मुर्गियों का सुस्त हो जाना, भूख कम लगना, अंडों का कम उत्पादन और चोटी का पीले रंग में बदल जाना और जल्दी मौत हो जाना है। इसके इलाज के लिए चिकन फार्म से कुछ भी अंदर या बाहर ले जाना बंद कर दें। फार्म के अंदर प्रयोग किए जाने वाले जूते अलग रखें। गड्ढा बनाएं और उसमें दी गई मात्रा में दवाई डालें। ताकि फार्म में जाने से पहले अपने पैरों को इस उपचारित पानी में डुबोया जा सके। फार्म के चारों तरफ र्टीरश्रळीेंश्र की स्प्रे करके कीटाणुओं को नष्ट करें।
सावधानियां  
क्योंकि यह बीमारी इंसानों को प्रभावित करती है इसलिए बीमारी से प्रभावित मुर्गियों को उठाने से पहले उचित कपड़े और दस्ताने पहनें। मरी हुई और संक्रमित मुर्गियों को जला दें या मिट्टी में दबा दें। मीट को 70 डिगरी सेल्सियस पर बनायें इससे संक्रमण मरता है और इसे खाने के लिए प्रयेाग किया जाता है।